लहजा
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तुमने नहीं कहा
कि प्रेम है मुझसे
न गुलाब दिया
न इज़हार
तुमने यह भी नहीं कहा
कि मेरी तरफ देखो
चांदनी रात में
ताल-तट पर
सिर्फ दिखाया चांद
कहा- देखो, कितना सुंदर है
देखी मैंने
कोहरे में डूबी रात
वलय चांद का
और आभामंडल उसका
‘अद्भुत!’
– मुंह से निकल पड़ा सहसा
तुमने कहा –
अद्भुत नहीं अकेला !
– युवा लेखिका शुचि मिश्रा जौनपुर