Desh-Videsh

https://www.amazon.in/SYSKA-HT3333K-Cordless-Stainless-Grooming/dp/B084TCJ5GD?_encoding=UTF8&pd_rd_i=B084TCJ5GD&pd_rd_r=baa5ee00-9aa4-4c16-b3d5-d0310c2b6b38&pd_rd_w=M8Ri3&pd_rd_wg=3e3KP&pf_rd_p=2e3368ba-1352-4971-ae4f-db555794cb4f&pf_rd_r=XDC8CRZ06TK18T5J3KN0&psc=1&refRID=XDC8CRZ06TK18T5J3KN0&linkCode=ll1&tag=digitalkari0101-21&linkId=27f38921ce5a0ced33e888c7306d49c0&language=en_IN&ref_=as_li_ss_tl

मोटिवेशनल स्पीकर डॉ विवेक बिंद्रा की बातें लोगों के लिए बनी तरक्की की राह

मोटिवेशनल स्पीकर डॉ विवेक बिंद्रा की बातें लोगों के लिए बनी तरक्की की राह दुनिया के सबसे अमीर लोगों में...

Read more

रायना जूस ने पोलैंड, यूरोप और भारत में अपने प्राकृतिक जूस की शुरुआत की

रायना जूस ने पोलैंड, यूरोप और भारत में अपने प्राकृतिक जूस की शुरुआत की नई दिल्ली (भारत), संकल्प सवेरा13 सितंबर:...

Read more

भाषा, संस्कृति और मूल्य डा. माधवम सिंह असिस्टेंट प्रोफेसर

भाषा, संस्कृति और मूल्य: डा. माधवम सिंह असिस्टेंट प्रोफेसर    संकल्प सवेरा भाषा ,संस्कृति और मूल्य में अन्योन्याश्रित संबंध होता है। ये  किसी समाज की अमूल्य धरोहर होते हैं। किसी समाज के विकास, संगठन व संतुलन में तीनों सामूहिक रूप से निर्णायक भूमिका निभाते हैं। भाषा, संस्कृति और मूल्य व्यवस्था से ही किसी समाज की एक विशेष अस्मिता निर्मित होती है। इनके अभाव में समाज की अस्मिता का लोप हो जाता है, अंततः समाज निष्प्राण हो जाता है। भाषा किसी समाज को संवादधर्मी बनाती है।संस्कृति समाज को एक सुदृढ़ परंपरा उपलब्ध कराती है । वहीं मूल्य समाज को उच्च आदर्शों व उदात्त लक्ष्यों की ओर उन्मुख करते हैं ।              भाषा- विज्ञान की दृष्टि से भाषा वस्तुतःमनुष्य की वगेंद्रियों से निःश्रित सार्थक ध्वनि संकेतों की यादृच्छिक प्रणाली होती है ,जिसके माध्यम से मानव समुदाय भावों व विचारों का परस्पर आदान- प्रदान करते हैं। भाषा के माध्यम से ही मनुष्य विकास की वर्तमान अवस्था तक पहुंचा है। भाषा के अभाव में किसी भी समाज का वैचारिक और भावनात्मक विकास संभव ही नहीं है।भाषा व्यापक अर्थों में भाव ,विचार ,आचार ,व्यवहार ,संस्कार आदि के साथ-साथ समूची संस्कृति का संवाहक होती है। संस्कृति का एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को स्थानांतरण भाषा के माध्यम से ही होता है। भाषा ही हमें किसी संस्कृति की मूल संवेदना तक ले जाती है। जिस प्रकार संस्कृति का निर्माण दीर्घकालिक प्रक्रिया से होकर होता है ठीक उसी प्रकार भाषा का निर्माण भी एक दीर्घकालिक प्रक्रिया से होकर ही होता है। एक भाषा के निर्माण में उसकी संस्कृति का महत्वपूर्ण योगदान होता है,  तो वहीं संस्कृति के निर्माण में उस स्थान या समाज विशेष की भाषा का महत्वपूर्ण योगदान होता है।  भारत की बहुरंगी संस्कृति के निर्माण में संस्कृत ,पालि ,प्राकृत ,अपभ्रंश ,अवधी, ब्रज,भोजपुरी, मैथिली, मगही, बांग्ला, असमी,उड़िया,मराठी, कन्नड़ , तेलुगु ,मलयालम, कश्मीरी,उर्दू  आदि भाषाओं का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। यहां की संस्कृति के मूल तत्व को हम इन्हीं भाषाओं के माध्यम से जान, समझ व महसूस कर सकते हैं। हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार "संस्कृति एक लंबी और  गहन साधना का परिणाम होती है। भारतीय जनता की विविध साधनाओं की सबसे सुंदर परिणति को ही भारतीय संस्कृति कहा जा सकता है।"हमें हमारी पीढ़ी से जो भी भाव ,विचार ,आचार ,संस्कार, मूल्य,मान्यताएं आदि विरासत के रूप में प्राप्त होते हैं उसे हम संस्कृति कहते हैं। भारत में विभिन्न संस्कृतियां  आपस में मिल- जुल कर सामासिक संस्कृति का निर्माण करती हैं। भाव -विचार ,खान-पान,आचार -व्यवहार ,तीज -त्यौहार , भाषा आदि सभी स्तरों पर हम इस समृद्धि को देख सकते हैं। खान -पान के स्तर पर देखें तो उत्तर से लेकर दक्षिण ,पूरब से लेकर पश्चिम तक भारत की थाली में हजारों व्यंजन सुशोभित होते दिखाई देते हैं। वेश-भूषा, पर्व- त्यौहार ,उत्सव आदि के स्तर पर भी हम भारतीय संस्कृति की समृद्ध विरासत को देख सकते हैं। भाषाई दृष्टि से भारतीय संस्कृति की बहुत गौरवशाली परंपरा रही है। धर्म और दर्शन के स्तर पर भी भारतीय संस्कृति का इतिहास बहुत गरिमामय रहा है। हिन्दू, मुस्लिम,सिख,ईसाई ,बौद्ध,जैन सभी धार्मिक रूप से भारतीय संस्कृति को समृद्ध करते रहे हैं। वेद, पुराण ,उपनिषद , गीता,षड्दर्शन (सांख्य ,योग ,वैशेषिक आदि) जैन दर्शन ,बौद्ध दर्शन , सूफ़ी दर्शन आदि का समृद्ध चिंतन भारतीय दर्शन की समृद्ध परंपरा का प्रतिनिधित्व करते हैं। भारतीय संस्कृति समय-समय पर रूढ़ियों (सतीप्रथा ,बाल- विवाह, अस्पृश्यता, ऊंच -नीच आदि)का त्याग करती हुई आगे बढ़ती रही है। भारतीय संस्कृति में मूल्यों का बहुत ऊंचा स्थान रहा है। मूल्य वे नैतिक व उच्च आदर्श होते हैं जिनकी ओर मानव,समाज व संस्कृति निरंतर अग्रसर होने का प्रयास करते हैं । सत्य,प्रेम ,अहिंसा, ईमानदारी ,सहिष्णुता ,करुणा, समन्वय,लोकमंगल ,समानता ,स्वतंत्रता व बंधुत्व आदि ऐसे प्रमुख मूल्य है जो भारतीय संस्कृति की शोभा बढ़ाते रहे हैं। "सत्यमेव जयते" भारतीय संस्कृति का आधार वाक्य रहा है।"सर्वे भवंतु सुखिन:,सर्वे संतु निरामया "जैसे उदात्त मूल्य भारतीय परंपरा की बुनियाद रहे हैं।  बौद्ध दर्शन अहिंसा एवं करुणा जैसे मूल्यों को बढ़ावा देता है।कबीर और मलिक मोहम्मद जायसी जैसे कवि प्रेम की मूल्य रूप में स्थापना करते हैं। जायसी ने लिखा है "मानुष प्रेम भयहु बैकुंठी नाहि त काह छार एक मूठी"। उर्दू के महान शायर मिर्ज़ा गालिब प्रेम को पाक बनाने वाला मूल्य बताते हुए लिखते हैं - "रोने से और इश्क से बेबाक हो गए धोए गए ऐसे कि बस हम पाक हो गए" राम

Read more

जनता लड़ेगी चौबीस का लोकसभा चुनाव: – रामगोविंद चौधरी

यूपी में जनता लड़ेगी चौबीस का लोकसभा चुनाव, नहीं खुलेगा भाजपा का खाता - रामगोविंद चौधरी बलिया,संकल्प सवेरा। सपा के...

Read more

रात्रिभोज में छाया रहा भारतीय परिधानों का जादू, जापान की फर्स्ट लेडी ने पहनी साड़ी; देखें तस्वीरें

रात्रिभोज में छाया रहा भारतीय परिधानों का जादू, जापान की फर्स्ट लेडी ने पहनी साड़ी; देखें तस्वीरें G20 Dinner: भारत...

Read more

पूर्व मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू हुए गिरफ्तार; भ्रष्टाचार के मामले में हुई कार्रवाई

पूर्व मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू हुए गिरफ्तार; भ्रष्टाचार के मामले में हुई कार्रवाई संकल्प सवेरा। आंध्र प्रदेश के आपराधिक जांच...

Read more

“नक्सलवाद उन्मूलन पुलिस प्रशासन और वर्तमान परिदृश्य”

"नक्सलवाद उन्मूलन पुलिस प्रशासन और वर्तमान परिदृश्य" विनोद कुमार टण्डन, एक अग्रणी पुलिस अधिकारी और शोधार्थी, नक्सलवाद, सुरक्षा प्रशासन, और...

Read more
Page 1 of 156 1 2 156

Recent News

  • Trending
  • Comments
  • Latest