खुटहन क्षेत्र के बीरमपुर गांव में तमाम नौजवान सेना में रहकर अपनी सेवाएं दे रहे है। इसीलिए इस गांव को सैनिक के गांव के नाम से भी जाना जाता है । इस गांव की मूल समस्या है कि गांव में चकबन्दी न होने के कारण गांव का आम रास्ते का भी आवागमन पूरी तरह से बंद है। कोई भी रास्ता इस गांव आने जाने के लिए नही है।
गांव में आजादी के बाद से अब तक चकबंदी न हो पाने के कारण ग्रामीणों और काश्तकारों का जीवन दुर्लभ हो गया है। ग्रामीणों के अथक प्रयास से सन 1997 में किसी प्रकार से शुरु हुई चकबंदी प्रक्रिया विभागीय कर्मचारियों और भू-माफियाओं के सांठ-गांठ से भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गयी।
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बीरमपुर गांव गोमती नदी के किनारे बसा होने के कारण नदी के भयंकर कटान का दंश भी झेलता है। वर्ष 1936 में गोमती नदी में आई भीषण बाढ़ के कारण गांव वालों को सुरक्षित स्थान पर जाना पड़ा, बाढ़ की विभीषिका समाप्त होने पर नदी ने अपनी धारा को बदलते हुए बीरमपुर गांव को दो भागों में विभाजित कर दिया। नदी के दक्षिणी भाग की जमीन एवं खेत को गौरा गजेन्द्रपुर जो बदलापुर तहसील में है। उस गांव के लोगों ने कब्जा कर लिया। खेत खाली करवाने को लेकर विवाद के कारण वर्ष 1938 में बीरमपुर और गजेन्द्रपुर के लोगों में जमकर मारपीट भी हुआ। जिसमें बीरमपुर की तरफ से नौ लोगों की हत्या हो गयी। ग्रामीणों को मजबूरन अपना घर खेत छोड़कर नदी के उत्तर की दिशा में बची हुई जमीन पर गुजर बसर करना पड़ रहा है।
इस गांव में लगभग ढ़ाई सौ से अधिक लोग देश की फौज में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। इसी गांव से सेना में जनरल, ब्रिगेडियर, कोर्टमार्शल सहित भारतीय फौज में विभिन्न पदों पर रहकर देश का मान सम्मान भी बढ़ा चुके हैं। इतना सब कुछ होने के बावजूद भी शासन प्रसाशन की नजर इस गांव में चकबंदी कराने पर नहीं गयी। ग्रामीणों के अथक प्रयास, धरना प्रदर्शनों के बाद चकबंदी विभाग कुम्भकर्णी नींद से जागा तो वर्ष 1997 में यहां चकबंदी कार्य प्रारम्भ हुआ। लेकिन कछुए की चाल चलने के कारण 17 वर्ष के बाद सन 2014 में धारा 9 का प्रकाशन आधे अधूरे ढंग से करके विभाग ने मात्र कोरम पूरा किया। धारा 9 का प्रकाशन होते ही चकबंदी अधिकारियों और भू- माफियाओं की मिलीभगत से गांव की सौ बीघे से अधिक जमीन को फर्जी तरीके से चंद लोगों के नाम गलत ढंग से आवंटित हो गयी। इस आशय की जानकारी जब और काश्तकारों को हुई तो गांव में खलबली मच गयी।
इसी गांव के निवासी कांग्रेस पार्टी खुटहन के ब्लाक अध्यक्ष संतोष मिश्रा की अगुआई में ग्रामीणों ने भ्रष्ट अधिकारियों और भू- माफियाओं के खिलाफ कानूनी लड़ाई शुरु किया। मिश्रा के अथक प्रयास से भ्रष्टाचार का यह प्रकरण उत्तर प्रदेश की विधान सभा में भी वर्ष 2020 में नियम 301 के तहत सवाल उठाया गया। विधान सभा के पटल से भ्रष्टाचार का इतना बड़ा मामला उठते ही चकबंदी अधिकारियों के हांथ पांव फूल गये। विभाग ने आनन फानन में सभी फर्जी आदेशों को निरस्त करते हुए भ्रष्टाचार में लिप्त दो लेखपाल और चकबंदी बिभाग के पेशकार के खिलाफ गलत ढंग से फर्जी आदेश बनाकर अमलदरामद करने,मूल बंदोबस्त, कार्यवाही पुस्तिका एवं बंदोबस्ती भू मानचित्र गायब करने का मुकदमा शाहगंज कोतवाली में पंजीकृत कराया। जिसके बाद पेशकार संतोष सिंह की हृदयाघात से मौत हो गयी एवं लेखपालो को निलंबित करके मामला पुनः ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।
चकबंदी न हो पाने के कारण गांव के लोगों को आने जाने के लिए रास्ते की जटिल समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। सामाजिक कार्यकर्ता एवं कांग्रेस नेता संतोष मिश्रा कहते हैं कि बीरमपुर की वर्तमान चकबंदी की प्रकिया पूरी तरह भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गयी इस कारण पुनः नए सिरे से तरमीम स्तर से चकबंदी कार्य शुरू होनी चाहिए।