अरे कोरोना!
तेरे बहाने देखी
हमने चहकती चिडिय़ा,
मंडराती तितलियाँ।
साफ स्वच्छ सा चांद,
सौम्य प्रकृति का नाद!
आंगन में खेलते बच्चे,
रसोई में पकवान अच्छे।
परिचय हुआ हमारा
ढलती हुई जिंदगी से,
कितने मरहूम रहे थे,
अपनो की बंदगी से।
किन सपनो के लिए
उनींदे से जाग रहे थे,
अपनो के लिए आखिर
कहा भाग रहे थे।
आखिर किस सुख के
लिए दोड़ रहे थे,
घर के लिए ही
घर से मुँह मोड़ रहे थे।
पर सच है कि खुद का
आंगन ही सच्चा है ॥
सारी दुनिया से परे
अपना घर ही अच्छा है॥
प्रकृति के पास लाने के लिए
धन्यवाद कोरोना।
हमारी जिजीविषा बड़ी सशक्त है,
अब तो हारो ना ॥
डॉ भावना शर्मा
झुंझुनूं