दिलीप कुमार की मृत्यु एक युग का अंत-प्रो. आर. एन. सिंह
संकल्प सवेरा “ ये ज़िंदगी के मेले दुनिया में कम न होंगें, अफ़सोस हम न होंगें” फ़िल्म मेला का ये अमर गीत आज मन को झकझोर गया। ये गीत दिलीप साहब पर फ़िल्माया गया था।
मेले आज भी हींगें, कल भी होंगे, पर फ़िल्म जगत के नायाब सितारे दिलीप साहब उसमे नहीं हींगें।
भारतीय फ़िल्म जगत में दशकों तक अपने अभिनय के बल पर अभूतपूर्व मान -सम्मान, प्रतिष्ठा एवं दर्शकों के दिल पर राज करने वाले भारतीयता के प्रति समर्पित, मानव मूल्यों के प्रबल पक्षधर, सहअस्तित्व के प्रतीक,और पारिवारिक आदर्शों को जीवन में जीने वाले हर दिल अज़ीज़ दिलीप कुमार जी हमारे बीच नहीं रहे।आज प्रातः उनके निधन की बहुत ही दुखद ख़बर आयी।
उन्होंने ९८ वर्ष का लम्बा, सार्थक एवं प्रेरक सफ़र तय किया। उनकी मृत्यु का समाचार आते ही हर वर्ग में शोक की लहर छा गई। सहसा किसी को विश्वास नही हो रहा था। पर सत्य तो सत्य है। उनके साथ ही कला के एक बेहद सार्थक युग का अंत हो गया।ऐसी महान शख़्सियत को शत- शत नमन है।
साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था कोशिश के साहित्यकारों, एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं ने दिलीप कुमार के निधन पर गहरा दुःख व्यक्त किया एवं इसे फ़िल्म जगत के लिए अपूरणीय क्षति बताया। डॉ. पी सी विश्वकर्मा ने उन्हें सामुदायिक एकता का प्रतीक तो वरिष्ठ गीतकार गिरीश ने अनमोल व्यक्तित्व का धनी बताया।
कोशिश के अध्यक्ष जनार्दन प्रसाद अस्थाना ने उनके किरदार को बेजोड़ बताया। सामाजिक कार्यकर्ता संजय उपाध्याय ने उन्हें महान कलाकार तो अशोक मिश्रा ने उन्हें ट्रैजेडी किंग बताया ।डॉ. राम मोहन सिंह ने कहा कि दिलीप साहब एक अनूठे इंसान और सामाजिक एकता के पोषक थे। इस अवसर पर अन्य अनेक वक्ताओं ने भी अपना विचार व्यक्त किया।