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विकास के मूलमन्त्र -स्वदेशी स्वावलंबन सहयोग और प्रथम समाजवादी प्रधानमंत्री÷ श्री चन्द्रशेखर

Basic of Development -Indigenous self -reliance cooperation and first socialist Prime Minister ÷ Shri Chandrashekhar

Sankalp Savera by Sankalp Savera
July 8, 2025
in Desh-Videsh, Jaunpur, Varanasi
0
विकास के मूलमन्त्र -स्वदेशी स्वावलंबन सहयोग और प्रथम समाजवादी प्रधानमंत्री÷ श्री चन्द्रशेखर
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विकास के मूलमन्त्र -स्वदेशी स्वावलंबन सहयोग और प्रथम समाजवादी प्रधानमंत्री÷ श्री चन्द्रशेखर

अंग्रेजी के प्रसिद्ध कवि रॉबर्ट फ्रॉस्ट की एक कविता मुझे बड़ी प्रिय लगती है जिसमें वे कहते हैं
कि-

“वुड्स ऑर लवली
डार्क एंड डीप
आई हैव सम प्रोमिसेज टू किप
माइल्स टू गो,
बिफोर आई स्लीप
माइल्स टू गो
बिफोर आई स्लीप।”

वर्तमान प्रधानमंत्री द्वारा विगत वर्ष स्वदेशी का उदघोष किया जाना एक तरह से उन्हें राष्ट्र निर्माण के महात्मा गाँधी और चंद्रशेखर जी के आदर्शों,सपनों और परम्पराओं से जोड़ता है। कहना न होगा कि कोरोना के संकट काल में यह बहुत ही साहसिक घोषणा थी।किन्तु इस घोषणा के साथ जनमानस की एक चिंता भी जुड़ जाती है कि क्या ये ‘ प्रोमिसेज टू कीप,माइल्स टू गो बिफोर आई स्लीप’ सम्भव हो पायेगा।
देखा जाए तो भारतीय राष्ट्र के उत्थान के क्रम में अभी तक तीन बार स्वदेशी की चर्चा हुई है या भारत में स्वदेशी को लेकर तीन विचार क्रियाशील हुए हैं। पहला, महात्मा गांधी का स्वदेशी विषयक विचार, दूसरा श्री चंद्रशेखर का स्वदेशी संबंधी विचार और तीसरा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और स्वदेशी जागरण मंच का विचार।

यूँ तो श्री चंद्रशेखर ने स्वीकार किया है कि उनपर सबसे अधिक आचार्य नरेंद्र देव का प्रभाव पड़ा है किंतु उनके तमाम साहित्य के अनुशीलन के आधार पर मैं एक बात निश्चित रूप से कह सकता हूँ कि श्री चन्द्रशेखर की गाँधी जी में भी अटूट आस्था थी, वह उनसे काफी प्रभावित थे। प्रभाव का यह स्पष्ट बिंदु हमें महात्मा गाँधी और श्री चंद्रशेखर के स्वदेशी संबधी विचारों में दिखाई देता है।


गाँधी जी और श्री चंद्रशेखर स्वदेशी को राष्ट्र की उन्नति के लिए आवश्यक मानते थे, बल्कि कहना ये चाहिए कि राष्ट्रीय उन्नति की नीति और मार्ग वह स्वदेशी में ही देखते थे। गाँधी जी कहा करते थे कि – ‘जो अपने देश में है, उसी पर विश्वास करो। थोड़े दिनों में जब तुम विकसित हो जाओगे तो दुनिया खुद तुम्हारे पास आएगी।’ गैट समझौते और डंकल प्रस्ताव का जो ऐतिहासिक विरोध चंद्रशेखर जी के द्वारा किसी समय किया गया था उसके पीछे उत्प्रेरक शक्ति गाँधी जी की यही उक्ति थी।यही समझ थी।

गाँधी जी के इस वक्तव्य में चंद्रशेखर जी पूर्ण विश्वास हमेशा कायम रहा। इसको उन्होंने जगह-जगह उद्धरित भी किया है। उनकी स्वदेशी संबंधी नीति महात्मा के इसी विचार से निर्मित हुई है।
योजनाओं का ग्रामिणकरण हो !
ग्रामो का औद्योगिकरण हो !
उद्योगो का श्रमिककरण हो !
श्रम का राष्ट्रीयकरण हो !
राष्ट्र का पूंजीकरण हो!
पूंजी का बिकेन्द्रीकरण हो !!
किंतु स्वदेशी संबंधी गाँधी के विचार से साम्यता रखते हुए भी श्री चंद्रशेखर स्वदेशी जागरण मंच के विचारों से भी इतेफाक रखते थे। यह एक विचित्र बात है। विचित्रता की एक बात और है कि इस इतेफाक में कुछ दरारें भी थी।इतेफाक का सबसे प्रबल बिंदु यह था कि स्वदेशी की अवधारणा को चंद्रशेखर जी और आरएसएस दोनों सिर्फ अर्थव्यवस्था तक ही सीमित नहीं मानते थे अपितु वह इसका विस्तार राष्ट्रीय संस्कृति और राष्ट्रीय जीवन तक देखते थे। श्री चंद्रशेखर कहते है कि- ” अगर हम स्वदेशी को आगे बढ़ाना चाहते हैं तो हमें अपनी सभ्यता पर,संस्कृति पर, विश्व में योगदान आदि पर अभिमान होना चाहिए।..कोई भी देश अपने मूल से हटकर विकसित नहीं हो सकता।’ इसी कारणसन 2000 के आसपास स्वदेशी जागरण मंच के श्री वीरेंद्र सिंह और श्री मुरलीधर राव के निमंत्रण पर श्री चंद्रशेखर ने आरएसएस के स्वदेशी मुहिम में हिस्सा लिया था किंतु कुछ समय पश्चात ही कुछ वैचारिक दरारों के कारण उन्होंने अपने आप को इस मुहिम से अलग कर लिया ।

चंद्रशेखर और आरएसएस के बीच इस वैचारिक दरार का सबसे पहला बिंदु था-
‘राष्ट्र की अवधारणा’।
श्री चंद्रशेखर आरएसएस की ‘राष्ट्र’ की अवधारणा को एक ‘खंडित’ अवधारणा मानते थे। वह राष्ट्र को एक ‘समुच्चय’ के रूप में परिभाषित करते थे न कि ‘एक भाषा-एक जाति-एक धर्म’ के एकांगी रूप में। श्री चंद्रशेखर कहते है कि -‘जो लोग भारतीय संस्कृति पर अभिमान की बात करते हैं, वही लोग इसे संकुचित बना रहे हैं। हमारी सभ्यता और संस्कृति सबके योगदान में विश्वास करने वाली रही है। हमने किसी को तिरस्कृत नहीं किया। यह एक ऐसा देश है, जहाँ तुलसीदास और कीनाराम की एक साथ पूजा कर दी गयी। यह वह देश है जहां महात्मा बुद्ध भगवान में विश्वास नहीं करते थे, ब्राह्मणों ने उन्हें ही भगवान बना दिया ताकि कोई यह न सोचें कि कोई भी भावना या विचार तिरस्कृत है।’

वैचारिक दरार का दूसरा बिंदु था- ‘विनिवेश का मुद्दा’।

श्री चंद्रशेखर कहा करते थे कि विनिवेश और स्वदेशी एक साथ नहीं चल सकते। जबकि आरएसएस एक तरफ भाजपा के विनिवेश नीति का समर्थन करती है वहीं स्वदेशी का भी राग अलापती है। उन्होंने विनिवेश पर बोलते हुए कहा था कि- “विनिवेश हमारी आत्मनिर्भरता के लिए घातक होगा। इससे समाज में विसंगतियां पैदा होंगी, राज्य की भूमिका बदलेगी और क्षेत्रीय असंतुलन पैदा होगा।” अपने समाजवादी विचारों के कारण भी चंद्रशेखर जी विनिवेश के धुर विरोधी थे।
विरोध का एक तीसरा बिंदु भी था।

चंद्रशेखर जी कहते थे कि विश्व बैंक द्वारा अनुमोदित नीतियों पर चलते हुए स्वदेशी के मंजिल को नहीं पाया जा सकता। विदेशी सहयोग हमें मुफ्त में नहीं मिलेगा उसकी कुछ न कुछ कीमत होगी। हम एक तरफ तो शेखी बघारते, चिल्ला चिल्ला कर कहते हैं कि हमारे पास बहुत विदेशी मुद्रा है और दूसरी तरफ विदेशी निवेश के लिए मनुहार भी करते हैं। विदेशी मुद्रा है तो ऋण क्यों चाहिए? उसे खर्च क्यों नहीं कर सकते?रोना क्यों रो रहे हो? विदेशी निवेश हमें स्वालंबी नहीं बनाने आता वह फायदा कमाने आता है। उन्होंने सरकार को आड़े हाथों लेते हुए सदन में कहा था कि- ‘इतिहास का अल्पज्ञ भी यह जानता है कि भारत कितना समृद्ध देश था और कितने देश यहाँ व्यापार करने आते थे। दूसरे देशों से हमें मदद लेनी चाहिए किन्तु यह मानना कि उनके बिना हम जिंदा नहीं रह सकते,यह मानना गलत है।विदेशी कर्ज का प्रयोग आज जिस चीज़ के लिए हो रहा है उसका देश के 70 प्रतिशत लोगों से कोई वास्ता नहीं है।’

वास्तव में श्री चंद्रशेखर की स्वदेशी संबंधी अवधारणा गाँधी जी और आरएसएस के उभय बिंदुओं को लेकर तैयार हुई थी। वह एक ओर जहाँ आरएसएस की भाँति स्वदेशी को राष्ट्रीय संस्कृति से जोड़ते हुए उस पर गर्व की बात करते हैं तो वहीं उन्हें गाँधी जी तरह भारत की सामासिकता भी प्रिय है। स्वदेशी के विचार के क्रियान्वयन के लिए वह जनता और नेतृत्व दोनों के इच्छाशक्ति को महत्वपूर्ण मानते थे।

श्री चंद्रशेखर भारत जैसे विशाल देश को बाहरी विदेशी देशों के व्यापारिक गतिविधियों पर आश्रित होने को राष्ट्र की आत्महत्या सरीखा मानते थे।वह कहते थे कि – “अगर हम भारतीय हैं, हम भारत में रहते हैं और यहाँ की सब चीजें विदेशी हो तो मुझे ये देश सूना सूना लगेगा। एकदम मरघट जैसा लगेगा।”

श्री चंद्रशेखर के स्वदेशी संबंधी अवधारणा का सबसे महत्वपूर्ण आयाम है- कृषक और कृषि। श्री चंद्रशेखर तीन ओर नदियों से घिरे एक पूर्वी जिले बलिया के एक किसान परिवार से निकल के राष्ट्रीय राजनीति में आये थे। अतः उनका मानना अनायास नहीं था कि भारत एक कृषि प्रधान देश है और भारत में कोई भी परिवर्तन बिना किसान को साथ लिए नहीं हो सकता। स्वदेशी का सपना तब तक सच नहीं हो सकता जब तक कि भारत की कृषि उन्नत न हो, आत्मनिर्भर न हो। वह आत्मनिर्भरता का पैमाना आंकड़ों को नहीं जमीनी सर्वेक्षण को मानने की बात करते थे। वे कहते थे कि – ‘भारत गरीब नहीं है। हमारे पास खनिज संपदा है, हमारे पास उपजाऊ जमीन है, हमारे पास श्रम शक्ति है तो कोई कारण ऐसा नहीं कि हम गरीब बनें रहें।

खेती क्यों पिछड़ रही है इसका जवाब देते हुए वे कहते हैं कि – इसे जान बूझ कर किया जा रहा है। विली ब्रांट के अध्ययन को वह नुमायां करते हैं और बताते हैं कि- ‘विली ब्रांट साहब की रिपोर्ट यह बताती है कि आज भले ही अमेरिका कृषि उत्पादों का सबसे बड़ा निर्यातक है किंतु निकट भविष्य में भारत ही एकमात्र देश होगा जो कृषि उत्पादों के निर्यात में अमेरिका को चुनौती दे सकता है। आज धारणाएं बदल दी गयीं। लोगों में यह विश्वास भर दिया गया कि कृषि घाटे का सौदा है। लैटिन अमेरिका के देशों ने उदारीकरण की आंधी में ऐसा किया और वे बर्बाद हो गए’।

आज धारणाएं बदल दी गयीं। लोगों में यह विश्वास भर दिया गया कि कृषि घाटे का सौदा है। लैटिन अमेरिका के देशों ने उदारीकरण की आंधी में ऐसा किया और वे बर्बाद हो गए’।

चंद्रशेखर किसी भी देश के अस्तित्व के लिए उसकी सुदृढ़ अर्थव्यवस्था व स्वालंबिता को आवश्यक मानते थे। किंतु इतना सब होते हुए भी श्री चंद्रशेखर की स्वदेशी की नीति हठवादिता पर आधारित नहीं थी। उनका मानना था कि जिन चीजों का निर्माण अभी हम अपने देश में करने को सक्षम नहीं हैं, उसका आयात हमें करना चाहिए। लेकिन यह चीजें विलासिता की नहीं होनी चाहिए।

अब आज जबकि प्रधानमंत्री स्वदेशी का संकल्प ले चुके हैं तो उन्हें इन चिंताओं और वैचारिक दरारों से भी पार पाना होगा और साथ ही यह भी तय है कि इस क्रम में उनके कुछ शक्तिशाली विदेशी शत्रु भी बनेंगे। जैसा कि गाँधी जी और श्री चंद्रशेखर के थे। प्रधानमंत्री और राष्ट्र को इनसे भी पार पाना होगा। और साथ ही यह भी निरंतर सोचते/ संकल्पित करते रहना होगा कि यह अन्ततः स्वदेशी ही है/होगा जो जयंत महापात्रा के प्रसिद्ध कविता ‘हंगर’ के उस मछुआरे को उस ‘हंगर’ से निजात दिला पायेगा जिसमें वह अपनी ‘भूख’ का सौदा धनी लोगों के ‘भूख’ से करने को विवश होता है।
यह स्वदेशी ही होगा जो हरीश चंद्र पांडेय की कविता के किसान को मजबूरी में आत्महत्या करने से रोकेगा।

हे जननायक आपको आपके सादर नमन!!💐💐

वशिष्ठ नारायण सिंह

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