ज्योतिरादित्य सिंधिया उस घराने का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसके सदस्य दो परस्पर विरोधी विचारधाराओं के फॉलोअर रहे हैं. मध्य प्रदेश की राजनीति का एक बेहद जाना-पहचाना नाम हैं ज्योतिरादित्य. वह सिंधिया राजघराने की तीसरी पीढ़ी के नेता हैं, जिनकी पहचान प्रदेश से बढ़कर देश में है. वह दादी स्व. विजयाराजे सिंधिया और पिता स्व. माधवराव सिंधिया की राजनीतिक विरासत के वारिस हैं. हालांकि, दादी और पिता दोनों का ताल्लुक़ दो अलग-अलग दलों से था. ज्योतिरादित्य को अपने पिता से राजनीति और क्रिकेट दोनों विरासत में मिले और दोनों को उन्होंने बखूबी संभाला.
ज्योतिरादित्य सिंधिया की राजनीति में एंट्री एक बेहद दुखद हादसे के बाद हुई. पिता माधवराव सिंधिया की सितंबर 2001 में यूपी के मैनपुरी में हेलीकॉप्टर क्रैश में मौत हो गई. वो उस वक्त गुना-शिवपुरी से सांसद थे. उनके निधन के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने पिता की राजनीतिक विरासत संभाली और कांग्रेस के टिकट पर गुना-शिवपुरी सीट का प्रतिनिधित्व किया. वह पहली बार 2002 में सांसद चुने गए थे, लेकिन 2019 में कांग्रेस के टिकट पर वो लोकसभा चुनाव मोदी लहर में हार गए. बाद में पार्टी बदलने पर अब वह बीजेपी से राज्यसभा सदस्य हैं. ज्योतिरादित्य सिंधिया 2006 में पहली बार संचार एवं सूचना प्रोद्यौगिकी राज्यमंत्री बनाए गए और फिर बाद में वाणिज्य और उद्योग राज्यमंत्री रहे.
एक सियासी तीर से विपक्षी दिग्गजों को परेशान करने का गुर सिंधिया से बेहतर कोई नहीं जानता. चुटीले तंज, सियासी समझ से भरे व्यंग्य और जनता से जुड़े मुद्दे उठाने में ज्योतिरादित्य माहिर हैं. राजघराने से होने के बाद भी आम आदमी से रिश्ता जोड़ने की कला सिंधिया के खून में है.