मैं कहानियां सुनना चाहता हूँ
उनमें आने वाले जंगलों में भटकना चाहता हूँ
उनमें खो जाना चाहता हूँ
मैं कहना चाहता हूँ कि कोई
मुझे ढूंढने न आये
मैं पक्षियों, हिरनों से पूछना चाहता हूँ
जंगल में खतरे कितने हैं
रोशनी नीचे तक आती है या नहीं
अंधेरे से निकलने का कोई रास्ता है या नहींमैं नदी की देह में बहना चाहता हूँ
समझना चाहता हूँ कि आखिर वह किसी भी
प्यास को ना क्यों नहीं करती
मैं उधर से निकलना चाहता हूँ
जिधर कोई गया नहीं आज तक
मैं पूरी प्रत्यंचा चढ़ाना चाहता हूँ
देखना चाहता हूँ कि तीर आसमान के पार
पहुँच सकता है या नहीं
मैं बचपन बचाये रखना चाहता हूं
ताकि निडर बना रहूं
मैं जानना चाहता हूँ कि आखिर
कब खत्म होगी राजा की कहानी
मैं हुंकारी पारता रहूं, सो जाऊं
या कुछ और करूं
सुभाष राय
वरिष्ठ कवि एवं प्रधान संपादक
जनसंदेश टाइम्स समाचार पत्र
21/1/2021