जभी से जगे रे भाई,तभी से सबेरा है डॉ श्रीपाल सिंह क्षेम
नीदिया घरो में झांके,धूपिया मुडेरा है।
जभी से जगे रे भाई,तभी से सबेरा है।।
कुर्सियो के स्वाद जागे,सौ-सौ उन्माद जागे।
बर्बरो की लूट औ,आतंकियो का फेरा है।।
जभी से जगे रे भाई,तभी से सबेरा है।।
कैसी-कैसी अनरीति,पेैसो पर बकी है प्रीति।
सत्तावलाली राजनीति , बाट रही हिंसा-भीति।
मुल्ला भी डकैती डाले,सन्त भी लूटेरा है।
जभी से जगे रे भाई,तभी से सबेरा है।।
नाग ये विवेकहीन,नाच रहे पराधीन,
कोई फॅूकता है बीन,पाक हो या चीन।
पर्दे के पीछे छिपा दूर का सपेरा है।
जभी से जगे रे भाई,तभी से सबेरा है।।