सरकारी स्कूलों से कॉन्जेनिटल कैटरैक्ट मरीजों को चिन्हित कर हो रहा उपचार
जिले के 21 ब्लाकों में तैनात हैं 42 टीम, 19 वर्ष तक के बच्चों की करते हैं जांच
कटे होंठ और तालू सहित 41 तरह की बीमारियों का होता है मुफ्त इलाज
जौनपुर,संकल्प सवेरा भगतपुर-दुर्गापट्टी गांव (सीएचसी बदलापुर अंतर्गत) के 8 वर्षीय करन की नजर नहीं टिकती नहीं थी। उसकी पुतली हमेशा घूमती रहती थी। वह ज्यादा दूर भी नहीं देख पाता था। बहुत कोशिश के बाद वह कुछ देख पाता था। खेलने के दौरान वह गेंद को भी बराबर नहीं देख पाता था। लगभग यही हाल था सिरकोनी सीएचसी अंतर्गत अहमदपुर गांव के अनिल मौर्य के बेटे सनी (एक वर्ष चार माह) का। उसे भी दोनों आंखों से दिखाई नहीं देता था। उसकी दोनों आंखों की काली पुतली के अंदर का हिस्सा सफेद हो गया था। इन दोनों बच्चों की आंखें अब ठीक हो चुकी हैं। यह चमत्कार हुआ राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के जरिए मिले मुफ्त उपचार से।
इस तरह ठीक हुईं आंखें: करन के पिता जयप्रकाश ने बताया कि दो वर्ष पहले दुर्गापट्टी स्थित प्राथमिक विद्यालय आरबीएसके की टीम आई थी। कारन वही पढाई कर रहा था। टीम ने करन की जांच की और बताया कि उसे कान्जेनिटल कैटरैक्ट है। वह टीम ही करन को सीतापुर आंख के अस्पताल ले गई और आपरेशन कराकर लेंस डलवाया। जिससे उसकी आंख ठीक हो गई है। वहीं अहमदपुर के अनिल, सनी की आंख दिखाने सीतापुर ले गए। वहां पर डॉक्टर ने आरबीएसके का कार्ड बनवाकर लाने पर मुफ्त में इलाज करने की सलाह दी। इसलिए उन्होंने सीएचसी सिरकोनी के माध्यम से आरबीएसके का कार्ड बनवाया और सीतापुर ले जाकर मुफ्त में आपरेशन करवाया। अब करन और सनी ठीक है। उन्हे ठीक से दिखाई देने लगा है।
जन्मजात होती है यह बीमारी: बदलापुर सीएचसी में नेत्र परीक्षण अधिकारी सुशील यादव बताते हैं कि कान्जेनिटल कैटरैक्ट ऐसी बीमारी है, जिसमें बच्चे को बहुत कम दिखता है। उसके रेटिना के अंदर लेंस वाले हिस्से में सफेदी आने लगती है। उम्र बढ़ने के साथ यह सफेदी लेंस वाले पूरे हिस्से को घेर लेती है और दिखना पूरी तरह से बंद हो जाता है।
आरबीएसके में 41 प्रकार की बीमारियों का होता है इलाज: आरबीएसके के नोडल अधिकारी व अपर मुख्य चिकित्साधिकारी (एसीएमओ) डॉ राजीव कुमार बताते हैं कि आरबीएसके के तहत न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट (जन्मजात दोष), कटे होठ और तालु, क्लब फुट (टेढ़ा पैर), जन्मजात मोतियाबिंद, दिल में छेद, जन्मजात बहरापन, डिफीसिएन्सीज सहित 41 प्रकार की जन्मजात व गंभीर बीमारियों से पीड़ित बच्चों के इलाज की निःशुल्क सुविधा दी जाती है।
21 ब्लाकों में 42 टीमें: डिस्ट्रिक्ट अर्ली इनटर्वेंशन सेंटर (डीईआईसी) मैनेजर अमित गौड़ बताते हैं कि जौनपुर जिले के 21 ब्लाकों में आरबीएसके की 42 टीमें हैं। हर टीम में दो डॉक्टर हैं। जो सरकारी स्कूलों और आंगनबाड़ी केंद्रों में जाकर 19 साल तक के बच्चों का स्वास्थ्य परीक्षण कर जन्मजात व गंभीर बीमारियों से पीड़ित बच्चों को चिह्नित करते हैं। चिह्नित करने के बाद इन बच्चों को शनिवार को सीएचसी पर बुलाते हैं। वहां से जिला अस्पताल ले जाकर एक रुपए की पर्ची बनवाकर डीईआईसी मैनेजर के सहयोग से तथा सीएमओ के हस्ताक्षर से रेफर करवाते हैं। उसके बाद सीतापुर आंख के अस्पताल में लेजाकर उसकी सर्जरी कराई जाती है।