संकल्प सवेरा आप सभी पाठको का स्वागत करता है अपनी स्टोरी/कविता/लेख लगवाने के लिए हमे भेजे 9795270000
आज देखा शहर की सड़कों पर,
आधुनिकता की खुली तस्वीर।
हमारा माथा ठनका,
भला क्या है यह आधुनिकता,
जिसके पीछे भागे जा रहे हैं सब।।
हिंदी मीडियम की घरेलू महिला हैं हम,
हमने सोचा! आज तो हम भी हो जाते हैं
थोड़े आधुनिक।
खुले बाल, मॉडर्न ड्रेस, हाई हील सैंडल,
हाथ में मोबाइल, अरे हां!
थोड़ा पटर पटर अंग्रेजी भी बोलना था।
माथा सटक गया। अबे!
कितना मुश्किल है,ये आधुनिक होना।
पर हमें तो बनना है न! आधुनिक।
हमने भी धारण किया। क्या?
अरे वही- मॉडर्न ड्रेस, खुले बाल, हाई हील सैंडल
हाथ में मोबाइल, और पटर पटर अंग्रेजी भी।।
उस पर भी सबसे बड़ी मुसीबत,
जोर से हंसना भी नहीं था, आधुनिक
लोग जरा सा मुस्कुराते बस है,
जैसे हंसने का टैक्स चुकाते हो।
खैर! निकले हम भी आधुनिक बनके,
एक मित्र ने कहा, बड़े अलग
दिख रहे हैं हम।
अलग!
लेकिन हम तो हमेशा अच्छे
दिखते हैं।
सारा दिन खुले बाल में, चेहरे पर
नकली मुस्कान लिए आधुनिक
बनी रहे। जब शाम हुई, तो खुद को
आईने में देखा।
अरे!
यह हम हैं? जैसे खुद को ही
ना पहचान पाए। चेहरे पर आधुनिकता
वाला भारी भरकम मेकअप जो था,
कहां खो गई हमारी सुंदरता;
शायद कहीं छुप गई, इस नकली
मेकअप के पीछे। आधुनिक मतलब बनावटीपन!
हमारी सोच के मुताबिक तो यही मतलब निकला,
या फिर इतना ही समझ पाए हम।
बिस्तर पर गए तो नींद ना आई,
सोचते रहे, क्या यही है
आधुनिकता!
एक भीड़ का हिस्सा बनकर,
आंखें बंद कर, बिना सोचे समझे
दौड़ते रहना। हमारे गांव में तो
इसे नकलची कहते हैं।।
आधुनिकता की सनक में हमने
तो खुद को ही खो दिया तब
समझ आया!
आधुनिकता मतलब स्वयं को खोना नहीं,
बल्कि आत्म विस्तार करना है। जो हमारे पास है,
जितना हमारे पास है, उसको सही दिशा में
विस्तृत करना ।
तब होंगे हम सच में आधुनिक!
और चलेंगे, जमाने के साथ
कंधे से कंधा मिलाकर।।
सुबह उठे, मुंह धोए,
और आईने के सामने, अपने
अंदाज में जोर से ठहाका लगाया,
और सोचे! है तो हम आधुनिक,
और बेहतर भी।।
साधना मिश्रा
कवियत्री