संकल्प सवेरा,जौनपुर। एक पल ही जिओ, फूल बनकर जिओ, शूल बनकर ठहरना नहीं जिन्दगी जैसी कविताओं के माध्यम से समाज को मानवता का संदेश देने वाले साहित्य वाचस्पति डा. श्रीपाल सिंह क्षेम छायावादोत्तर युग के श्रेष्ठ रचनाकार थे।
डा. क्षेम ने आरंभिक शिक्षा जौनपुर में ग्रहण करने के उपरांत उच्च शिक्षा प्राप्त करने हेतु इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। इलाहाबाद उन दिनों हिंदी साहित्य का केन्द्र था।
महाप्राण सूर्यकांत त्रिपाठी, डा. धर्मवीर भारती, प्रो. विजयदेव नारायण शाही, लक्ष्मीकांत वर्मा, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, डा. जगदीश गुप्त के अलावा महीयसी महादेवी वर्मा जैसे दिग्गज साहित्यकार वहां अपनी आभार बिखेर रहे थे। 

वहां की साहित्यिक संस्था परिमल की पूरे देश में ख्याति थी। जौनपुर के लिये यह गौरव की बात रही कि डा. क्षेम उक्त संस्था के सम्मानित सदस्य रहे। अपनी कविताओं के माध्यम से उन्होंने देश के शीर्षस्थ रचनाकारों के बीच अपनी पहचान बनायी।
उच्च शिक्षा प्राप्त करने के उपरांत उन्होंने पूर्वांचल के प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान तिलकधारी महाविद्यालय में अध्यापन कार्य आरंभ किया। वे अध्यापन के साथ साहित्य सृजन में भी तत्पर रहे। हिंदी विभागाध्यक्ष के रूप में सेवानिवृत्त होने के बाद भी डा. क्षेम साहित्यिक क्रिया-कलापों से दूर नहीं।
यहां पर उन्होंने एक साहित्यिक परिवेश का निर्माण किया। अनेक नवोदित कवियों एवं शायरों ने उनके शिष्यत्व में मार्गदर्शन प्राप्त किया। डा. क्षेम स्वयं में एक संस्था थे। उन्होंने विकलांग पुनर्वास केन्द्र के अध्यक्ष पद का निर्वहन करते हुए दिव्यांगों की सेवा का महान कार्य किया। इस प्रकार वे सामाजिक उत्तरदायित्व के प्रति सजग रहे।
मन की नींद बहक जायेगी। सोयी आग दहक जायेगी।। तुम कस्तूरी केश न खोलो, सारी रात महक जायेगी।। जैसी श्रृंगार रस की उत्कृष्ट रचना करने वाले डा. क्षेम ने राष्ट्रीय ऊर्जा से ओत-प्रोत कविताओं का भी सृजन किया। जन्म की भूमि भी कुंदन से कम नहीं होती। राष्ट्र की रागिनी वंदन से कम नहीं होती। आओ, चुटकी से उठा माथ से लगा लें हम, देश की धूल भी चंदन से कम नहीं होती।।

जैसी कविताओं का सृजन करके डा. क्षेम ने आने वाली पीढ़ी को देशशक्ति का संदेश भी दिया। उनकी कविताओं में विविधता मिलती है। उनकी प्रसिद्ध कृति राख और पाटल में जहां अवसाद और निराशा झलकती है।
वहीं नवनिर्माण और आशा की नवीन किरण भी दिखायी देती है। नीलम तरी, ज्योति-तरी, संघर्ष-तरी, अन्तरज्वाला, रूप तुम्हारा, प्रीति हमारी जैसी उत्कृष्ट कृतियों के प्रणेता डा. क्षेम ने महर्षि वेद व्यास के जीवन पर आधारित कृष्ण द्वैपायन जैसे महाकाव्य की रचना करके हिंदी साहित्य के भंडार को समृद्ध किया।
उनके योगदान का मूल्यांकन करते हुए उ.प्र. हिंदी संस्थान ने उन्हें साहित्य भूषण तथा मधुलिमये पुरस्कारों से समाप्त किया।
वहीं हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग ने उन्हें साहित्य वाचस्पति की उपाधि से अलंकृत किया। जनपद की मिट्टी को राष्ट्रीय-अन्तरराष्ट्रीय क्षितिज पर गौरवान्वित डा. क्षेम की रचनाएं युगों-युगों तक समाज का मार्गदर्शन करती रहेंगी।