रामचरित मानस का सुमिरन बिना हवाई जहाज त्रिभुवन की यात्रा कराता है : मोरारीबापु
महुवा में चार दिवसीय तुलसी जन्मोत्सव संपन्न
रिपोर्ट विवेक चौबे
संकल्प सवेरा,तलगाजरडा: श्रावण मास में शुक्ल पक्ष की सप्तमी रामचरित मानस के रचयिता पू. गोस्वामी तुलसीदासजी की जन्म जयंती के उपलक्ष्य में प्रति वर्ष पू. मोरारीबापू के पावन सानिध्य में वर्ष 2010 से शुरू हुई श्रृंखला इस वर्ष 2022 में 12 मनकों के रूप में आज चार दिवसीय तुलसी जन्मोत्सव के भागरूप पूर्ण हुई।
जैसा कि सभी जानते हैं कि, रामचरित मानस के विद्वानों और इस क्षेत्र में योगदान देने वाली संस्थाओं को विशेष तौर पर सम्मानित करने के लिए तुलसी पुरस्कार, व्यास और वाल्मीकि पुरस्कार अर्पित किए जाते है। वर्ष 2010 की श्रृंखला में और वर्ष 2015 से वाल्मीकि और व्यास पुरस्कारों की पूर्ति की गई थी। पुरस्कार प्राप्त करने वालों को सूत्रमाला, प्रशस्ति पत्र और 1.5 लाख रुपये की राशि से सम्मानित किया जाता है। इस वर्ष के दौरान इन क्षेत्रों में योगदान देने वाले नौ गणमान्य व्यक्तियों को आज दिनांक 4 अगस्त, 2022 के दिन कैलाश गुरुकुल, महुवा के जगतगुरु आदि शंकराचार्य सभागृह में सम्मानित किया गया।
यह पुरस्कार प्राप्त करने वाले विद्वानों में वाल्मीकि पुरस्कार पू. जगद्गुरु श्री माधवाचार्यजी महाराज (अयोध्या), श्री विजयशंकर देवशंकर दयाशंकर पंड्या (अहमदाबाद), रामायण धारावाहिक के निर्माता स्व. रामानंद सागर को दिया गया पुरस्कार उनके पुत्र श्री प्रेमसागर ने स्वीकार किया था। व्यास पुरस्कार भगवताचार्य पू. शरदभाई व्यास (धरमपुर), आचार्य गोस्वामी श्री मृदुल कृष्णजी महाराज (वृंदावन) के प्रतिनिधि उमाशंकरजी को और महाभारत धारावाहिक के निर्माता श्री बी.आर. चोपड़ा का पुरस्कार उनकी प्रतिनिधि सुश्री प्रीतिबेन वखारिया ने स्वीकार किया। तृतीय क्रम के तुलसी पुरस्कार से सुश्री रमाबेन हरियानी (जयपुर), श्री मुरलीधरजी महाराज (ओंकारेश्वर) और महंत श्री राम हृदयदासजी (चित्रकूट धाम, सतना, मध्य प्रदेश) को सम्मानित किया गया।
पुरस्कार समारोह में पूज्य मोरारीबापू ने कहा कि, जो विद्वान इस त्रिभुवन ग्रंथ का मुख से जाप कर रहे हैं, वे सभी मदह की “पादुका अभिषेक” करना पसंद करते हैं। यह पुरस्कार पहल केवल एक कड़ी है, एक माध्यम है। किन्तु वास्तव में यह आप सभी की वंदना भीतर से ऊर्जा मूल्यों को प्रकट करता है। “शायरी तो सिर्फ बहाना है असली मकसद तो आपको रीज़ाना है”। तलगाजरडा यह चाहता हैं कि, यह पहल इस भूमि पर हमेशा प्रज्जवलित रहे। आप सभी यहां आते रहना। एक इच्छा यह भी है कि हम इस चार दिवसीय उत्सव को अगले मनके में सप्तक में परिवर्तित करें। किसी ने यह भी सुझाव दिया कि अगर हम तुलसीजी के नाम को प्रणाम करते हैं, तो रत्नावलीजी को भी याद नहीं कर सकते..? इसलिए भविष्य में किसी मातृशक्ति की भी रत्नावली पुरस्कार के रूप में वंदना करनी चाहिए। कथा पाठकों को पांच बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
हम नृत्य को बोलने, सुनने, याद रखने, गायन और अनुमोदन के साथ भी जोड़ सकते हैं। किसी भी मामले में कुछ भी कहना है तो स्पष्ट तौर पर कहना चाहिए। लोग हमेशा बात करने के अवसरों की तलाश में रहते हैं। किन्तु भजन करने वालों को किसी की टिप्पणी पर ध्यान देने की जरूरत नहीं। बुद्ध पुरुष दीक्षा और भिक्षा देते हैं। तमाम व्यक्ति को अपने और रामचरित मानस के चरित्र का ध्यान रखना होता है। तीन चीजें बहुत महत्वपूर्ण हैं, जो आप गाते हैं उस पर आपको दिव्य विश्वास होना चाहिए। दूसरा जब भी आपको मौका मिले, तो साधुसंग करें और अंत में जिस शरण में प्रेम हो, उसका भजन करें। व्यास को फ्रेम में चिपकाया नहीं जा सकता। साधु में द्वेष नहीं होता और जो सबका भला चाहतै है, वहीं साधु होता है।
तलगजरडा के चित्रकूट धाम के नामकरण के लिए मोरारीबापू ने एक अच्छा तर्क दिया। भागवत, रामायण, महाभारत और वेद-उपनिषद जैसे संस्कृत शास्त्रों के अनेक विद्वान चार दिनों तक महुवा के कैलाश गुरुकुल में पूज्य मोरारीबापू के आतिथ्य से अभिभूत हुए।
मंच का संचालन श्री हरिश्चंद्रभाई जोशी ने किया और व्यवस्था का संचालन श्री जयदेवभाई मांकड ने किया था।