डॉ श्रीपाल सिंह क्षेम की कुछ प्रेरक पंक्तिया।
राष्ट्र की रागिनी वंदन से कम नही होती।
जन्म की भूमि भी नन्दन से कम नही होती।
आओ चुटकी से उठा माथ से लगा ले हम।
देश की धूल भी चन्दन से कम नही होती।
नाव तूफान से तो बचा लाये हम।
अब किनारो से बंच जाय तो जानिये।
धार मझधार तो है अपने जाने हुए ।
कर्ण धारो से बंच जाय तो जानिये।
गीत के प्रति समर्पण।
कुछ रीते कुछ अनरीतो में।
कुछ दिन बीत गये मीतो में ।
मेरे तो उतने ही दिन थे।
जितने बीत गये गीतो में।
संकल्प सारे बिखर गये होते।
शिखर से पांव मेरे उतर गये होते।
गीत मेरे न बचाते मुझको।
तो हम कब के मर गये होते।
जीवन दर्शन से सम्बंधित पंक्तिया।
एक पल ही जियो फूल बनकर जियो।
शूल बनकर ठहरना नही जिन्दगी।
एक पल ही जियो गीत बनकर जियो।
अश्रु बनकर बिखरना नही जिन्दगी।
पांव मे हो थकन , अश्रु भींगे नयन।
राह सूनी मगर गुनगुनाते चलो
यन्त्र सा यह न मानव रहो है कभी।
यन्त्र सा फिर न मानव रहेगा कभी।
फूल बनकर कहानी कहेगा कभी।
इसलिए प्रीति के स्वर बिखेरो यहॅ।
प्यार की चांदनी मे नहाते चलो।
श्रंगार
सोयी आग दहक जायेगी।
मन की नींद बहक जायेगी।
तुम कस्तुरी केश न खोलो।
सारी रात महक जायेगी।
जग कहता है तुम्हे निहारा मैने पाप किया।
मै कहता बस उतने ही क्षण मेरा पुण्य जिया।
यह शाप-ताप यह पुण्य अपने भावांे की एक माप।
अपना मन मानस निर्मल हो सौ चॉंद नहाये पानी मे।
मै गीत रचॅू अगवानी में।।
कुछ अंधेरे तो टल गये होते।
पॉव आगे निकल गये होते।
दीप सचमुच मे दीप होते तो।।
दीप से दीप जल गये होते।।
बरसे बादल सा मन निथर जाता।
सारा संकल्प ही बिखर जाता।।
पानी ऋंगार का चढा जब भी।
पानी तलवार का उतर जाता।।