जौनपुर : मौसम में लगातार उलटफेर हो रहा है। रात में तापमान के गिरने व दिन में बढ़ने के साथ ही मौसम विशेषकर बदलीयुक्त बूंदाबादी व नम वातावरण फसलों के लिए नुकसानदेह है। सबसे अधिक खतरा आलू की फसल को है। फसल को झुलसा रोग व कीटों से बचाने के लिए सतर्कता आवश्यक है। थोड़ी सी लापरवाही बरतने पर उत्पादन प्रभावित हो सकता है।
कृषि के जानकारों का कहना है कि अगेती फसल में झुलसा रोग के प्रकोप से पत्तियां सिरे से झुलसना प्रारंभ होती हैं जो तीव्र गति से फैलता है। पत्तियों पर भूरे काले रंग के जलीय धब्बे बनते हैं तथा पत्तियों की निचली सतह पर रूई की तरह फफूंद दिखाई देती हैं। बदलीयुक्त 80 फीसद से अधिक आर्द्र वातावरण एवं 10 से 20 डिग्री सेंटीग्रेड तापक्रम पर इस रोग का प्रकोप बहुत तेजी से होता है और दो से चार दिनों के अंदर फसल नष्ट हो जाती है। कृषि विज्ञान केंद्र अमिहित के मुख्य वैज्ञानिक डा. नरेंद्र सिंह रघुवंशी ने सलाह दी कि फसलों को झुलसा रोग से बचाने के लिए जिक, मैग्नीज कार्बाेनेट 2 से 2.5 किलोग्राम को 800 से 1000 लीटर पानी में अथवा मैंकोजेब दो से 2.50 किलोग्राम 800 से 1000 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव किया जाए तथा आवश्यकतानुसार 10 से 15 दिन के अंतराल पर दूसरा छिड़काव कापर आक्सीक्लोराइड 2.5 से तीन किलोग्राम अथवा जिक मैग्नीज कार्बाेनेट दो से 2.5 किलोग्राम और माहू कीट के प्रकोप से नियंत्रण के लिए दूसरे छिड़काव में फफूंदनाशक के साथ कीटनाशक जैसे डायमोथोएट एक लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से मिलाकर छिड़काव करना चाहिए। उन्होंने बताया कि जिन फसलों में झुलसा रोग का प्रकोप हो गया है ऐसी स्थिति में रोकथाम के लिए फफूंदनाशक तीन किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 800 से एक हजार लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।












