अतिथि
लेखक-जितेन्द्र दुबे
(पुलिस उपाधीक्षक)
अतिथि…!… मेहमान….!
अब आप पहले जितना
नहीं सुहाते हो…
आपका आना,
कुछ अच्छा नहीं लगता…
पहले तो…!
आपके आने की तिथि….
पता नहीं होती थी और,
आपके एकाएक आने पर
पूरा का पूरा परिवार….
घर की बिगड़ी व्यवस्था को…
जल्दी से…
सजाने,संवारनेऔर सुधारने में
हो जाता था व्यस्त…
बच्चे. …!
मिठाई की आस में
आपके आसपास….
फुदकने लगते थे…..
आप ही की लाई हुई मिठाई,
या फिर पहले से रखा गुड़,
या कभी-कभार बिस्किट से आपका स्वागत….
पूरा हो जाता था ….!
नादान बच्चों के मन में…
पूरी-पकवान की खुशबू…..
सामान्य कल्पना थी…..
आपका आना सच में…
त्योहार सा होता था…
आज….. !
आप आते तो हो पर…
संचार माध्यमों से पहले ही
सूचना देकर…..
यहाँ तक कि…..
पास-पड़ोस वालों को भी,
पता होता है …..
आपके आने की तिथि……
फिर……
आप किस बात के अतिथि…..?
मिठाई तो पहले से ही,
घर में आ जाती है…..
बिस्तर,घर,दुआर,आँगन
सब साफ सुथरा….
पकवान की पूरी पुख्ता तैयारी बच्चों को पूरा निर्देश…हिदायत…
देकर समझा दिया जाता है….
और अतिथि….
आप भी ना….!
पहले जैसे “प्यारे”,”बड़कू”,”श्यामू”
और “बबलू” कहते-फिरते…
पास-पड़ोस का…
हाल-चाल लेते नहीं आते हो..
बड़े लिहाज से….
घर आकर चुपचाप….
घंटी बजाते हुए…..
आगमन की सूचना देते हो..
मुँडेर के कौवे……
जो पहले आपके आगमन की,
पूर्व सूचना दिया करते थे…
उनके पहुँचने से पहले…
आप खुद ही पहुँच जाते हो… अतिथि इसीलिए… … बी आप अब…
पहले जितना नहीं सुहाते हो…!
पहले जितना नहीं सुहाते हो….!!