अधूरी चीजों से हमेशा बनती
आयी हैं नयी दुनियाएं
अधूरे में ही चलती रहती है हलचल
अधूरे में ही होती है बार- बार उगने और
फूलने- फलने की संभावना
हजारों नदियां बहती चली
जाती हैं समुद्र तक
फिर भी हजारों
नदियों के जल के
लिए खाली रहता है समुद्र
नदियाँ भी अपने समूचे
आयतन में कहां भरती हैं कभी
पहाड़ों से झरते पानी के लिए
खुली रहती हैं हमेशा
एक अधूरे को दूसरे अधूरे की
जरूरत रहती है हमेशा
किसी एक के भी मारे जाने से सारे
प्राणियों में कुछ मर जाता है
धरती भी मर जाती है थोड़ी
एक अधूरा अन्य अधूरों
के लिए मिट जाने को तैयार रहता है
सारे अधूरे मिलकर एक बड़ा अधूरा
रचते हैं, जो समूचे ब्रह्मांड के
मिल जाने पर भी अधूरा ही
रहता है
मशहूर कवि सुभाष राय की कलम से