आइये आज आपको एक ऐसे अनूठे मेले की सैर कराते हैं जो सिर्फ महिलाओं के लिए लगता है. पूरे विश्व में मात्र राजस्थान के उदयपुर शहर में सहेलियों की बाड़ी में हरियाली अमावस्या पर लगने वाले इस मेले में पुरुषों को प्रवेश की इजाजत नहीं होती है.
मेवाड़ में सैंकड़ो वर्षों से सावन के महीने में लगने वाला यह मेला उदयपुर के महाराणा फतेहसिंह की महारानी बख्तावर कंवर की देन है. उन्होंने एक दिन राजा से कहा की उदयपुर में लगने वाले हरियाली अमावस्या के मेले का दूसरा दिन सिर्फ महिलाओं के लिए होना चाहिए. महारानी की इच्छा पूरी करते हुए महाराणा फतह सिंह ने दूसरे दिन सखियों का मेला लगाने की हामी भर दी. बस फिर क्या था इस मेले में यदि कोई पुरुष प्रवेश कर लेता तो उसे महाराणा के कोप का सामना करना पड़ता था. आज भी यही परंपरा जारी है.
सखियों के इस मेले में अगर कोई मनचला युवक प्रवेश कर भी जाता है तो उसकी शामत आ जाती है. पुलिस और प्रशासन द्वारा मेले में सुरक्षा के माकुल इंतजाम किए जाते हैं. इसलिए सखियों के इस मेले में महिलाए बगैर किसी रोक टोक के खुलकर लुत्फ उठाती हैं. अब प्रशासन द्वारा इस बात की व्यवस्था की जाती है कि मेला परिसर में महिलाओं और युवतियों के अलावा कोई और प्रवेश न करे. मेले का आयोजन करने वाली नगर निगम प्रतिवर्ष मेले के आकर्षण को बढ़ाने के लिए प्रयासरत है. निगम महापौर चन्द्र सिंह कोठारी ने मेले को विश्व प्रसिद्ध बनाने के लिए जल्द ही एक सर्वे करवाने की बात कही है. सखियों के इस मेले का उदयपुर में महिलाओं को पूरे साल इंतज़ार रहता है. वे इस मेले का जमकर लुत्फ़ उठाती हैं. मेले में महिलाओं, युवतियों और छोटे बच्चों के अलावा किसी पुरुष को आने की इजाजत नहीं होती है. यहां आने वाली महिलाएं इस बात से काफी खुश नज़र आती है कि साल में एक ऐसा भी दिन आता है जब वे जमकर मौज मस्ती कर सकती हैं. उन्हें रोकने टोकने वाला कोई नहीं होता है. इस बार भी गुरुवार को भरे इस मेले का यहां आई हजारों महिलाओं ने जमकर लुत्फ उठाया. खरीददारी के करने के साथ झूले और खाने पीने का भी मजा लिया. मेले में स्वछंद घूमती महिलाएं खासी प्रसन्नचित्त नज़र आईं. वाकई में सहेलियों की बाड़ी और फतहसागर की पाल पर लगने वाला सखियों का यह मेला अनूठा है. साथ ही यह मेला इस बात का भी प्रमाण हैं कि मेवाड़ में महिलाओं को बराबरी का दर्जा डेढ़ सौ साल पहले ही मिल चुका था.