लखनऊ,संकल्प सवेरा। बात 2005-06 की है। खेल विभाग के निदेशक आरपी सिंह उस समय केडी सिंह बाबू स्टेडियम में आरएसओ हुआ करते थे। आरपी जब भी अपने कार्यालय की खिड़की से मैदान में देखते तो चिलचिलाती धूप में एक छोटी सी लड़की हॉकी स्टिक लेकर ड्रिबलिंग करती नजर आती। बिना सर्दी-गर्मी की परवाह के बाकी लड़कियों से पहले वह मैदान पर आ जाती थी।
उसकी ड्रिबलिंग देख अपने जमाने के धुंरधर आरपी ने उस लड़की को बुलाकर कुछ टिप्स दिए। दिग्गज खिलाड़ियों की नसीहतों और कोच पूनमलता राज की मेहनत को उस लड़की ने अपना हथियार बनाया और आज वह टोक्यो ओलंपिक में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ हैट्रिक जमाने वाली पहली भारतीय खिलाड़ी बन गयी।
जी हां, बात हो रही है महिला हॉकी टीम की फारवर्ड वंदना कटारिया की। वंदना लखनऊ स्पोर्ट्स हास्टल में पांच साल प्रशिक्षु रही और यहीं से उसने हॉकी सीखी। वंदना 2005 से लेकर 2010 तक हास्टल में रही। पूनमलता राज वह कोच हैं जिन्होंने वंंदना की प्रतिभा को निखारा।
खिलाड़ियों में खुशी की लहरः वंदना जब हॉस्टल में आयीं तो उनकी उम्र करीब चौदह वर्ष की थी। वंदना की तेजी और जबर्दस्त स्टिक वर्क के कारण कोच ने एक फारवर्ड के रूप में स्थापित किया।
अपनी शिष्या की सफलता पर कोच पूनमलता कहती हैं कि वंदना लखनऊ की आबोहवा में फाइटर बनी है। वंदना की सफलता से स्टेडियम के खिलाड़ी और दूसरे कोच बेहद खुश हैं। स्थानीय खिलाडिय़ों ने कोच को मिठाई खिलाकर खुशी मनाई
2006 में मिली जूनियर टीम में जगहः वंदना की प्रतिभा का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सब जूनियर राष्ट्रीय चैंपियनशिप में दर्जन भर गोल के कारण 2006 में राष्ट्रीय सब जूनियर कैंप में बुला लिया गया। इसी साल वह भारतीय जूनियर टीम का हिस्सा बनीं। सिर्फ साल भर के अभ्यास में ही वह भारतीय टीम का हिस्सा बन गई थीं।
इसके बाद वंदना ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। वह साल 2010 तक लखनऊ हॉस्टल में रहीं। वह एक बार भारतीय टीम में आईं तब से बरकरार हैं। साल 2013 में जर्मनी में हुए जूनियर विश्व कप में भारत ने कांस्य जीता। इसमें वंदना की खास भूमिका रही। उन्होंने पांच गोल मारे थे।
मौसम की परवाह न खाने कीः साथी खिलाड़ियों का कहना है सुबह और शाम के नियमित अभ्यास सत्र के अलावा भी वह स्टिक लेकर उतर जाती थी। गर्मी हो या सर्दी उसे खेल के आगे कुछ नहीं दिखता था। स्टेडियम के कर्मचारी भी वंदना को गर्मियों में पसीना बहाते देख आश्चर्य में पड़ जाते थे।
वंदना पर खेल विभाग को गर्वः पूर्व प्रशिक्षु वंदना के खेल पर विभाग को भी गर्व है। खेल निदेशक डा. आरपी सिंह का कहना है कि इस प्रदर्शन से पूरे प्रदेश का सिर ऊंचा हुआ है। वह जब लौटेंगी तो घोषणा के मुताबिक उन्हेंं 10 लाख रुपये नगद पुरस्कार दिया जाएगा। इसके अलावा टीम जो भी पदक जीतेगी उसके मुताबिक धनराशि भी दी जाएगी