गुवाहाटी के हाफिजनगर बस्ती के सोशल वर्कर कहते हैं कि ऑनलाइन क्लासेज़ जोम्शेर जैसे बच्चों की पहुंच से काफी दूर हैं. इनके लिए परिवार के लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करना एक बड़ी चुनौती है.
गुवाहाटी. जिन हाथों में पेन और किताब होनी चाहिए उन हाथों ने अब फावड़ा और तसला उठा लिया है. ऐसा नहीं है कि ये बच्चे पढ़ते नहीं हैं. गुवाहाटी के हाफिजनगर बस्ती के बच्चे लॉकडाउनसे पहले स्कूल जाया करते थे. इन बच्चों के परिजन कड़ी मेहनत कर उन्हें भविष्य के लिए तैयार कर रहे थे. लेकिन कोरोना महामारी ने इन लोगों की नौकरी छीन ली. हालात ये हो गए है परिवार का पेट पालने के लिए इन बच्चों को अब दिहाड़ी मजदूरी करनी पड़ रही है.
16 साल का जोम्शेर अली काफी दिनों के बाद गुवाहाटी के हाफिजनगर बस्ती में अपने घर पर पहुंचा है. लेकिन वह पढ़ने के लिए बाहर नहीं गया था वह शहर में दिहाड़ी मजदूरी कर रहा था. COVID-19 महामारी के कारण स्कूल बंद होने के साथ उसकी मां को भी नौकरी से हटा दिया गया. बीमार मां को सहारा देने के लिए 7वीं कक्षा का ये छात्र अब दैनिक मजदूरी करता है. जोम्शेर का कहना है कि लॉकडाउन खत्म होने के बाद जब स्कूल खुल जाएंगे तो वो स्कूल जाएगा. जोम्शेर का कहना है कि वह स्कूल नहीं छोड़ना चाहता था, लेकिन बीमार मां की देखभाल के लिए काम करना पड़ रहा है. जोम्शेर ने बताया कि वह हर दिन 200 से 300 रुपये कमा लेता है. उसने कहा कि मुझे पता है कि पढ़ाई बेहद जरूरी है लेकिन वह जानता है कि परिवार का पेट भरना उससे भी ज्यादा जरूरी है.
इस बस्ती के सोशल वर्कर कहते हैं कि ऑनलाइन कक्षाएं जोम्शेर जैसे बच्चों की पहुंच से काफी दूर है. इनके लिए परिवार के लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करना एक बड़ी चुनौती है. यही कारण है कि इन बच्चों ने काम करना शुरू कर दिया है. हमें डर है कि जब स्कूल फिर से खुलेगा तो ये पढ़ाई करने वापस जाएंगे भी या नहीं. इन बच्चों को अब काम करने की आदत पड़ गई और पढ़ाई से ये दूर होते जा रहे हैं जो काफी चिंता की बात है
जोम्शेर की मां मोमिना खातून ने कहा, जब से लॉकडाउन किया गया है तब से जहां जहां पर भी मैं काम किया करती थी उन सब लोगों ने मुझे हटा दिया. इससे घर पर बहुत संकट आ गया. मैं बीमार हूं इसलिए अब जोम्शेर ही काम करता है. जोम्शेर इस बस्ती में काम करने वाला अकेला लड़का नहीं है. हाफिजनगर झुग्गी की किसी भी झोपड़ी में झांकें तो आपको वहां रहने वाले 68 परिवारों के बीच एक जैसी ही कहानी देखने को मिलेगी. यहां पर लगभग 120 बच्चे रहते हैं, जिसमें से एक तिहाई काम में लगे हुए हैं.