भारतीय ज्ञान परंपरा राष्ट्रीय अस्मिता एवं चेतना का प्रतिबिंब है
संकल्प सवेरा, जौनपुर। तिलकधारी स्नाकोत्तर महाविद्यालय जौनपुर के शिक्षक शिक्षा विभाग के तत्वाधान में दो दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन दिनांक 5 एवं 6 मई को किया गया। महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो० राम आसरे सिंह ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा को आधुनिक वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में पुनः स्थापित करने की दिशा में इस प्रकार की संगोष्ठी आवश्यक है। जिसका उद्देश्य भारत की प्राचीन सांस्कृतिक और बौद्धिक धरोहर को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से विश्लेषित कर उसे जनमानस के समक्ष प्रस्तुत करना है।
मुख्य वक्ता पूर्व प्राचार्य प्रो० समर बहादुर सिंह ने कहा कि भारत का इतिहास वेद, उपनिषद, आयुर्वेद, योग, नाट्यशास्त्र, ज्योतिष, वास्तु शास्त्र, और दर्शन जैसे ज्ञान के विविध क्षेत्रों से समृद्ध रहा है। यह परंपराएं न केवल आध्यात्मिकता की प्रतीक रही हैं, बल्कि इनके पीछे वैज्ञानिक तर्क, अनुभव और प्रयोग के आधार भी मौजूद हैं। किंतु आधुनिक काल में इन विषयों को प्रायः केवल आस्था या पौराणिक संदर्भों से जोड़कर देखा जाता है, जिससे इनकी वैज्ञानिकता जनसामान्य की दृष्टि से ओझल हो गई।
विभागाध्यक्ष प्रो. सुधांशु सिन्हा ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा सिर्फ संस्कृति का हिस्सा नहीं है, बल्कि हमारे जीवन-दर्शन का अभिन्न अंग है।
वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय , शिक्षा संकाय के डीन प्रोफेसर अजय कुमार दुबे ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा सनातन परंपरा है जो कि हमारे जीवन मूल्यों में निहित है।
प्रो० रीता सिंह ने संगोष्ठी का विषय प्रवर्तन करते हुए कहा है कि भारतीय ज्ञान परंपराओं की वैज्ञानिक बुनियाद को पुनः खोज कर उसका विश्लेषण करें और शोध आधारित प्रमाणों के साथ उसे शैक्षणिक व सामाजिक पटल पर प्रस्तुत करना अत्यंत समीचीन है।
इस संगोष्ठी में भारतीय ज्ञान परंपरा के विविध विषयों पर प्रो० श्रद्धा सिंह, डॉ० अरविंद कुमार सिंह, डॉ० प्रशांत कुमार पांण्डेय, डॉ गीता सिंह, डॉ सुलेखा ने विस्तार पूर्वक चर्चा किया। इस संगोष्ठी के समन्वयक डॉ सीमांत राय ने अथितियों एवं प्रतिभागियों का स्वागत किया ।आयोजक सचिव डॉ वैभव सिंह ने संगोष्ठी का सफल संचालन किया ।संगोष्ठी में कुल लगभग 180 शोध पत्रों का वाचन किया गया। संगोष्ठी में विभिन्न विश्वविद्यालय के शोधछात्र, बी०एड्० और एम०एड् के छात्रों ने प्रतिभाग किया।