प्रकाश की खोज में …………..
डिम डिमाते धीमें प्रकाश में
सहसा आकाश चमका दीप्त होकर
प्रकाश फैला, डगर चमकी कुछ दूर पर
जब प्रकाश पहुँचा, दोर हो चुकी थी।
बहुत ही देर ! ……..
नीले गगन को अंधकार अतिक्रमित कर रहा था
कुछ तारे टिमटिमाते, गगन में
कोई नगण्य जुगनू सा कुछ रास्ते भी दिखाते कुछ देर के खातिर
मानो की बत्ती आने-जाने में ही आनान्दित हो रही है।
किन्तु सहसा कुछ चमक ही जाते,
नये अनजान चौराहे
समझे- सुलझे कुछ तो उलझे
उनसे अजनबी जो थे !……….
अंधकार के बाद सहसा बिजली कड़की
लगा कही फटा आकाश आज
प्रकाश में राहे चमकी साफ-साफ
कुछ दूर पीछे जो छूट गईं थी
वो दिखी…..
बारिस खत्म होने को थी
आकाश घिरता खुलता
प्रकाश में वो अब तेज न था
मन में वो वेग न था
निकल आते है अब भी कुछ जुगनू
है क्षीण रौशनी उनकी भी
हमको वो क्या दिखलाते
खुद ही वो एक पहेली थी
हमको कैसे सुलझा पाते
जब दिखी न कोई डगर
हुआ ना तब भी सबर
आंखें कुछ अब देख ना पाती
रोटियां भी सेक ना पाती
समय, गुजरा…………. गुजरता गया
अंधकार में सब कुछ काला
था नही कोई उजाला ।
……....कौशल किशोर मौर्य( लखीमपुर खीरी)