इलेक्टोरल बांड (Electoral Bond) का इतिहास और उसका संक्षिप्त विवरण
*कीर्ति आर्या*
संकल्प सवेरा। इलेक्टोरल बांड क्या है? इलेक्टोरल बांड को सुप्रीम कोर्ट द्वारा क्यों बंद किया गया तथा इसे क्यों असंवैधानिक (Unconstitutional) घोषित किया गया? इलेक्टोरल बांड पर सरकार का क्या विचार है? Article 19 of Constitution क्या है? इलेक्टोरल बांड कौन इशू करता है? इत्यादि पर चर्चा नीचे संछेप में प्रस्तुत है।
सबसे पहले इलेक्टोरल बांड को जान लेते हैं। अगर किसी पोलिटिकल पार्टी को कोई चंदा देना चाहता है तो SBI bank से उसे जाकर बांड (bond) खरीदना पड़ता है । ये बांड (bond) कितना भी ख़रीदा जा सकता है किसी भी व्यक्ति द्वारा | यह अलग – अलग प्राइस (Price) के होते हैं | जैसे की -1000 ₹, 10000 ₹, 1 लाख ₹, 1 करोड़ ₹ इत्यादि | इसे इस तरह से समझ सकते हैं, जैसे की -कहीं से टोकन ख़रीदा एक काउंटर से और दूसरे काउंटर पर जमा किया और खाना ले लिया उस रेस्टॉरेंट में। यह एक उधारण के तौर पर था। इसी तरह SBI में जाकर बांड खरीदना होता है और जिस पोलिटिकल पार्टी को चंदा देना चाहता है कोई व्यक्ति, वह उस बांड को उस पोलिटिकल पार्टी को दे सकता है और वह पोलिटिकल पार्टी उसे बैंक से क्लियर करा लेती है। इसमें यह शर्त है की अगर पोलिटिकल पार्टी इस बांड या चंदे को 15 दिन में इसे इस्तेमाल नहीं करतीं हैं तो वो बांड या चंदा प्राइम मिनिस्टर रिलीफ फण्ड (Prime Minister Relief Fund) में चला जाएगा।
अब प्रश्न यह उठता है की इसे माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा असंवैधानिक (Unconstitutional) क्यों घोषित किया गया और इसे पूरी तरह से रद्द क्यों किया गया ?
माननीय सुप्रीम कोर्ट के 5 जज की बेंच द्वारा इसे असंवैधानिक घोषित किया गया। जब भी कभी सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच बनती है तो कम से कम 5 बेंच की होती है -यह संविधान के अनुछेद 145(3) कोनसीटूशन (Article 145 (3) 0f constitution) में लिखा हुआ है और जब भी कोंस्टीटूशनल बेंच बनाई जाती है तो वह सिर्फ चीफ जस्टिस ऑफ़ इंडिया (CJI) द्वारा ही बनाई जा सकती है। यह जानकारी सामान्य ज्ञान के लिए थी। 5 जजेज जिसमे चीफ जस्टिस ऑफ़ इंडिया(CJI) डी. वाई. चन्द्रचूर्ड थे तथा उनके साथ ४ और जस्टिसस जैसे की जस्टिस बी. आर. गवई, जस्टिस मनोज मिश्रा, जस्टिस संजीव कुमार, जस्टिस जे. बी. पारदीवाला थे। इन 5 जस्टिस ने इलेक्टोरल बांड को अनुछेद या आर्टिकल 19 ऑफ़ कंस्टीटूशन (Article 19 of constitution) का उलंघन तथा वोइलेशन करने के बद्द्दे नजर रखते हुए इसे रद्द किया तथा असंवैधानिक घोषित किया ।
अब कुछ चर्चा आर्टिकल या अनुच्छेद 19 ( Article 19 of constitution) के बारे में कर लेते है। आर्टिकल 19 ( article 19) आम नागरिक को कई तरह के अधिकार देता है| जैसे की -कुछ भी जानने का अधिकार, कही भी बिना हथियार के इकठ्ठा होने का अधिकार, कोई अस्स्सोसिएशन (association) बनाने का अधिकार, पूरे भारत में कही भी जाने तथा कही भी रहने का अधिकार तथा पूरे भारत में कही भी कोई व्यापर या नौकरी करने का अधिकार ,इत्यादि अधिकार भारत के नागरिको को आर्टिकल 19 (Article 19) द्वारा दिए गए हैं।
आर्टिकल 19 (Article 19) का हनन 2 कारण से हो रहा है। पहला – आम आदमी को इनफार्मेशन नहीं मिल सकती की किस किस पोलिटिकल पार्टी को चंदा जा रहा हैं और उस पोलिटिकल पार्टी का मेंबर ,मेंबर ऑफ़ पार्लियामेंट, (Member of Parliament) बनेगा वो भी आम आदमी के वोट द्वारा। आम आदमी का ये हक् है और आम आदमी को पता होना चाहिए की किस पोलिटिकल पार्टी को कहाँ कहाँ से फंडिंग या चंदा मिल रहा हैं। दूसरा- अगर कोई कंपनी पोलिटिकल पार्टी को चंदा देती है और कंपनी लॉस में है तो वह कंपनी पोलिटिकल पार्टी को फंडिंग कुछ ना कुछ मुनाफा लेने के लिए कर रही है। तीसरी बात यह की अगर वो कंपनी लिस्टेड कंपनी है तो आम आदमी ने उसमे इन्वेस्ट (invest) किया है अपनी जमा पूजी मतलब की उस कंपनी में पैसे लगाएं हैं कमाने के लिए तथा उस कंपनी का स्टॉक (stock) लिया हुआ है। यह स्टॉकहोल्डर (stockholders) का अधिकार है की वो कंपनी के बारे में पूरा डिटेल में जाने। पर ऐसा हो नहीं रहा जानकारी दी नहीं जा रही और लोस् मेकिंग कंपनी पैसा स्टॉकहोल्डर्स (stockholders) को न देकर पोलिटिकल पार्टी को फंडिंग और चंदा दे रहीं हैं जिससे उनको भविष्य में कुछ फायदा हो। यह सरासर आर्टिकल 19 ऑफ़ कंस्टीटूशन (Article 19 of Constitution) का उल्लंघन है।
अब प्रश्न यह उठता है की कोई भी अचानक से पोलिटिकल पार्टी बनाए और इलेक्टोरल बांड या चंदा लेकर माला मॉल हो जाए ? तो इस का उत्तर यह है की कोई भी अचानक से इसका लाभ नहीं ले सकता। इसके लिए शर्त यह है जो की रिप्रजेंटेशन ऑफ़ पीपल एक्ट ( आर पी ऐ ) 1951, 29 (A ) , (representation of People Act 1951 29(A)), में लिखा है की जिस पोलिटिकल पार्टी को पिछले साल इलेक्शन (election) में , लोकसभा या राज्य सभा, में 1% वोट मिला हो तभी वो यह इलेक्टोरल बांड या चंदा ले सकता है।
यह बिल २०१७ (2017)में आया था , उस समय के फाइनेंस मिनिस्टर (Finance Minister) का कहना था की इलेक्टोरल बांड ब्लैक मनी (black Money) को बिलकुल ख़तम कर देगा।इलेक्टोरल बांड आने से पहले चंदा कैश में लिया जाता था । पोलिटिकल पार्टी द्वारा काला धन चंदे के रूप में लीया और दीया जाता था।
अब चंदा इलेक्टोरल बांड द्वारा ही लिया और दिया जाता है। इलेक्टोरल बांड सिर्फ और सिर्फ SBI सरकारी बैंक द्वारा ही लिया और क्लियर कराया जा सकता है। अब यह दिक्कत यह है की SBI सरकारी बैंक है और क्योकि यह सरकारी बैंक है तो इसकी सारी इनफार्मेशन या जानकारी सिर्फ सरकार के पास रहती है। ADR ( Association of democratic reform) द्वारा यह रिपोर्ट आई है, जिसके द्वारा कहना है की ९०% (90%)फण्ड सरकार यानी BJP को गया है । इसका मतलब यह है सरकारी बैंक होने के नाते अगर कोई कंपनी किसी और पोलिटिकल पार्टी जो की सत्ता में नहीं है , अगर उसे फंडिंग या चंदा देती है तो सरकार को पता चल जाएगा और इसका नतीजा यह होगा की सरकार उस कंपनी के ऊपर उल्टा कार्यवाही कर सकती है। इसलिए सुप्रीम कोर्ट को बोलना पड़ा की जो भी फंडिंग या चंदा इलेक्टोरल बांड द्वारा इशू (issue) हुआ है सरकारी बैंक SBI द्वारा ,वह बैंक को पब्लिश करना पड़ेगा। लेकिन अब SBI इलेक्टोरल बांड इशू ( issue) भी नहीं कर सकता क्योकि पब्लिक को पता ही नहीं चल रहा है कौन सा बांड किस कंपनी द्वारा लिया या दिया गया , कितने की लेन देन हुई इत्यादि जानकारी नहीं मिल रही , जो की आर्टिकल 19 (Article 19 ) का उल्लंघन है। पब्लिक का अधिकार है Right to Know।
अब जानते हैं सुप्रीम कोर्ट में क्या हुआ ? माननीय सुप्रीम कोर्ट के ओप्पोसिशन लॉयर (Opposition Lawyer) जो की अधिवक्ता प्रशांत भूषण तथा अधिवक्ता कपिल सिब्बल थे। इन दोनों लॉयर्स ने तथ्य रक्खा की सरकार की कॉर्पोरेट अफेयर वेबसाइट में २५ लाख कंपनी से भी ज्यादा कंपनी है। कोई भी कैसे ढूँढ सकता है फण्ड या चंदा किसको – कहाँ जा रहा है। शेयरहोल्डर्स (Shareholders) को भी कुछ नहीं पता चल रहा वो भी धोखे का शिकार हो रहे हैं।
उधर दूसरी तरफ लॉयर थे सॉलिसिटर जनरल (Solicitor General) तुषार मेहता। उन्होंने ओप्पोसिशन लॉयर्स (Opposition Lawyers) के आर्गुमेंट (argument) के रिप्लाई दिया की एक तरफ प्राइवेसी (Privacy ) है और एक तरफ इनफार्मेशन (information)। कुछ लोग चंदा या इलेक्टोरल बांड देना चाहते हैं पर उन्हें प्राइवेसी (Privacy) भी चाहिए। उनका मानना है की उनका नाम उजागर न हो। और वह सही भी है क्युकी Right to Privacy के तहत उनका नाम उजागर नहीं होना चाहिए। अब Right to Privacy और Right to information में से किसको ज्यादा तबज्जो मिलनी चाहिए ये कोर्ट के ऊपर है। सॉलिसिटर जनरल (solicitor General) तुषार मेहता ने दूसरा रिप्लाई दिया आर्गुमेंट (Argument) के की जो व्यवस्था पहले थी कैश (Cash) में लेने की, जिससे ब्लैक मनी (Black Money) को बढ़ावा मिलता था, इतने बड़े सिस्टम (System) को इलेक्टोरल बांड ने ध्वस्त किया है। जो की एक बहुत बड़ा कदम है ।
सारे आर्गुमेंट (arguments) तथा तथ्य को ध्यान में रख कर माननीय सुप्रीम कोर्ट ने डिसिशन लिया की इलेक्टोरल बांड असंवैधानिक (Unconstitutional) है क्यकि ये पब्लिक इंटरेस्ट में नहीं है। पब्लिक को पता ही नहीं है की फंडिंग या चंदा कहाँ , किधर, किसको जा रहा है और पब्लिक ही अपने प्रतिनिधि को चुन रही है वोट के माध्यम से तो उसे पता होना चाहिए सारी जानकारी तथा शेयर होल्डर को भी अज्ञानता में रखा जा रहा है जो की करप्शन (Corruption) को बढ़ावा दे रही है। इसलिए इसे रद्द किया गया है और इसे असंवैधनिक घोषित किया जा रहा है।
लेखक
कीर्ति आर्या
LL.B, Master in Financial Management, B.com
3 years of Experience as Internal Auditor in Aditya Birla Group