गिलोय (Giloy) एक बहुवर्षायु लता है. आयुर्वेद (Ayurveda) में इसको कई नाम से पुकारा जाता है जिनमें यथा अमृता, गुडुची, छिन्नरुहा, चक्रांगी मुख्य हैं. बहुवर्षायु तथा अमृत के समान गुणकारी होने के कारण इसका नाम अमृता भी है. आयुर्वेद में इसे महान औषधि (Medicine) माना गया है. इसके पत्ते (Leaf) बिल्कुल पान के पत्ते की तरह दिखाई देते हैं. गिलोय की लता जंगलों, खेतों की मेड़ों, पहाड़ों की चट्टानों पर कुण्डलाकार में चढ़ती हुई पाई जाती हैं. यह अधिकतर नीम (Neem) और आम (Mango) के पेड़ के आसपास मिलती हैं. आपको बता दें कि जिस पेड़ को यह अपना आधार बनाती है, उसके गुण भी इसमें समाहित हो जाते हैं. इसका तना छोटी उंगली से लेकर अंगूठे जितना मोटा भी हो सकता है. इसकी जड़ें जगह-जगह से निकलकर नीचे की ओर झूलती रहती हैं.
चट्टानों अथवा खेतों की मेड़ों पर जड़ें जमीन में घुसकर अन्य लताओं को जन्म देती हैं. बेल के कांड की ऊपरी छाल बहुत पतली, भूरे या धूसर रंग की होती है, जिसे हटा देने पर अंदर का हरा रंग साफ नजर आने लगता है. गिलोय की पत्तियों में कैल्शियम, प्रोटीन, फॉस्फोरस अधिक मात्रा में पाया जाता है. इसके अलावा इसके तनों में स्टार्च की भी अच्छी मात्रा मौजूद होती है.
गिलोय का इस्तेमाल कई तरह की बीमारियों को दूर करने के लिए किया जाता है. ये एक सुपर पावर ड्रिंक भी है. ये इम्यून सिस्टम को पावरफुल बनाती है, जिसकी वजह से कई तरह की बीमारियों से सुरक्षा मिलती है. गिलोय की पत्तियां बैक्टीरिया और वायरस जनित कई बीमारियों को जड़ से खत्म करने की क्षमता रखती हैं. पहले के समय में भी गिलोय का इस्तेमाल बुखार को ठीक करने के लिए किया जाता रहा है. गिलोय का काढ़ा कई दिन तक लगातार सेवन करने से पुराने से पुराना बुखार भी तुरंत ठीक हो जाता है.