ऐसा मानते हैं कि इन पितरों का आशीर्वाद सूक्ष्मलोक से परिवार जनों को मिलता रहता है. पितृपक्ष में पितृ धरती पर आकर लोगों को आशीर्वाद देते हैं और उनकी समस्याएं दूर करते हैं. इस बार पितृपक्ष 02 सितम्बर से 17 सितंबर तक रहेगा.
परिवार के जिन पूर्वजों का देहांत हो चुका है, उन्हें पितृ कहा जाता है. जब तक कोई व्यक्ति मृत्यु के बाद पुनर्जन्म नहीं ले लेता, तब तक वह सूक्ष्मलोक में रहता है. ऐसा मानते हैं कि इन पितरों का आशीर्वाद सूक्ष्मलोक से परिवार जनों को मिलता रहता है. पितृपक्ष (Pitru paksha 2020) में पितृ धरती पर आकर लोगों को आशीर्वाद देते हैं और उनकी समस्याएं दूर करते हैं. इस बार पितृपक्ष 02 सितम्बर से 17 सितंबर तक रहेगा.
पितृपक्ष में कैसे करें पितरों को याद?
पितृपक्ष में हम अपने पितरों को नियमित रूप से जल अर्पित करें. यह जल दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके दोपहर के समय दिया जाता है. जल में काला तिल मिलाया जाता है और हाथ में कुश रखा जाता है. जिस दिन पूर्वज की देहांत की तिथि होती है, उस दिन अन्न और वस्त्र का दान किया जाता है. उसी दिन किसी निर्धन को भोजन भी कराया जाता है. इसके बाद पितृपक्ष के कार्य समाप्त हो जाते हैं.
कौन पितरों के लिए श्राद्ध कर सकता है?
घर का वरिष्ठ पुरुष सदस्य नित्य तर्पण कर सकता है. उसके अभाव में घर को कोई भी पुरुष सदस्य कर सकता है. पौत्र और नाती को भी तर्पण और श्राद्ध का अधिकार होता है. वर्तमान में स्त्रियां भी तर्पण और श्राद्ध (Shradh 2020) कर सकती हैं. इस अवधि में दोनों वेला स्नान करके पितरों को याद करना चाहिए. कुतप वेला में पितरों को तर्पण दें. इसी वेला में तर्पण का विशेष महत्व है.
क्या हैं पितृपक्ष के नियम?
तर्पण में कुश और काले तिल का विशेष महत्व है. इनके साथ तर्पण करना अद्भुत परिणाम देता है. जो कोई भी पितृपक्ष का पालन करता है, उसे इस अवधि में केवल एक वेला सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए, पितृपक्ष में सात्विक आहार खाएं, प्याज लहसुन, मांस मदिरा से परहेज करें. जहां तक संभव हो दूध का प्रयोग कम से कम करें.
कर्ज लेकर ना करें तर्पण
पितरों को हल्की सुगंध वाले सफेद पुष्प अर्पित करने चाहिए. तीखी सुगंध वाले फूल वर्जित हैं. दक्षिण दिशा की ओर मुख करके पितरों को तर्पण और पिंड दान करना चाहिए. पितृपक्ष में नित्य भगवदगीता का पाठ करें. कर्ज लेकर या दबाव में कभी भी श्राद्ध कर्म नहीं करना चाहिए.