जौनपुर।भारतीय मनोविज्ञान परिषद् एवं मनोविज्ञान विभाग, कुंवर वीर सिंह विश्वविद्यालय आरा, बिहार के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित अंतरराष्ट्रिय वेबिनार में पधारे मनोवैज्ञानिकों ने कोविद -19 से उत्पन्न मानसिक संकट- तनाव, चिंता, भय, असुरक्षा, आत्म हत्या जैसी कठिन सामस्यों से उबरने के लिए अनेक प्रकार के बहुत ही उपयोगी सलाहों को साझा किया। विषय प्रवर्तन करते हुए प्रो. आर एन सिंह, वाराणसी ने इस महामारी को अपने जीवन का सबसे डरावना अनुभव बताया और कहा कि बचाव ही सबसे बड़ा अस्त्र है। हमें रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाना होगा, दिमाग से डर निकलना होगा। दुनिया में इस समय पचास लाख से अधिक लोग संकर्मित हैं , तीन लाख से अधिक लोग काल के गाल में असमय समा गए और लगभग 47 लाख अभी भी बीमार पड़े है, सर्वत्र त्राहि त्राहि है। ऐसे में लोगों को मानसिक रूप में टूटने से बचाना सबकी जिम्मेदारी है।प्रो. रवि गुंथे जोधपुए ने अपना विचार साझा करते हुए कहा कि संकट के इस दौर में मनोवैज्ञानिकों की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण हो गई है। जो लोग इसकी गिरफत में है, जो तीमारदारी में लगे हैं और जो सुरक्षा में लगे हैं, सभी के प्रति हमारी नैतिक जिम्मेदारी बनती है, उन्हें सहयोग एवं सहानुभूति की जरुरत है, अगर हम काउंसलर के बजाय उनके मित्र के रूप में पेश आयें तो उनका हमारे प्रति विश्वास बढ़ेगा और मनः स्थिति में बहुत अच्छा सकारात्मक परिवर्तन आएगा । प्रो. जी पी, ठाकुर का मत रहा कि कोरोना को लेकर जो दहसत पहले थी, उसमे अब कमी आयी है, तथापि लोगों के मन को सतत सहज एवं सजग रखना है। लोगों के विचार एवं संज्ञान को बदलने की जरुरत है। लॉक डाउन ने जीवन में बहुत कुछ बदल दिया है , जीने की नयी शैली लोग अपना रहे हैं, लोगो में धैर्य बढ़ा है, कम साधनोँ के साथ भी जीना सीखा दिय। मुश्किलों से लड़ने के लिए ऐसे जज्बे की बनाये रखना होग।
प्रो. बी एल दुबे, अमेरिका ने लोगो के दिल से दहसत निकलने पर बल दिया। इसके लिए शिथिलीकरण उपचार को मुफीद बताया। प्रो. एन के चड्ढा, दिल्ली ने बचाव, एवं व्यावहारिक परामर्श पर बल दिया, लोगों के मन में यह यकीन बैठना है कि यह एक वीमारी मात्र है, इसे धब्बा मानकर भेदभाव न करें, अपितु हमदर्दी के साथ सहयोग करे। प्रो. एच एस अस्थाना, वाराणसी का विचार रहा कि हमें इस चौनौती को स्वीकार करना ही है , बस सजग रहिए, इससे डरना कोई समाधान नहीं है, मन को खुश रखिये, अपना धैर्य कायम रखिये । प्रो. हरिकेश सिंह का विचार रहा कि कोरोना ने हमें संघर्ष में भी जीना सिखाया, हमारी आतंरिक ताकत बढ़ी है, इसे बनाये रखना होगा। `
सामाजिक समस्यायों पर अच्छी पकड़ रखने वाले प्रो. बी जी सिंह, कुलपति, बिलासपुर ने कई मार्मिक दृश्यों को संदर्भित करते हुए रोगियों के प्रति भेदभाव पर चिंता जाहिर किया और कहा कि समाज में व्याप्त नफ़रत एवं अज्ञानता को मिटाये बिना ऐसी महामारी से लड़ पाना एक बड़ी चुनौती है। प्रो. के एस सेंगर, रांची ने कहा कि लोगों के मन से कोरोना के खौफ से बाहर निकालने कि जरुरत है , यह भी एक बीमारी है, कोई दैवी विपत्ति नहीं, अतः: सतर्कता एव दवा दोनों जरुरी है। लॉक डाउन में छूट मिलने पर हमें और भी सतर्क रहना होगा. प्रवासियों का पलायन भी संकट को बढ़ा सकता है। इधर भी ध्यान की जरुरत है। प्रो उमा पति सिंह , मगध, का सुझाव था कि यह एक वैश्विक समस्या है, हर किसी को आगे आना होग। हमें भविष्य में भी सतर्क रहना होगा।