जौनपुर,संकल्प सवेरा। इंसानियत के साथ इससे बड़ा क्रूर मजाक और क्या हो सकता है कि जब पूरी दुनिया के साथ हमारा देश कोरोना नाम की जानलेवा महामारी से कराह रहा है और चारों तरफ दहशत महामारी का माहौल बना हुआ है और लोग अस्पतालों में बेड, दवा वेंटीलेटर जैसे अन्य प्राण रक्षक सुविधाओं के अभाव में अपने अपने मां बाप बच्चों के सामने सड़क पर और अस्पतालों में दम तोड़ रहे हैं? तो हमारे देश की प्रांतीय सरकारें विवेक शून्य होकर चुनाव आयोग के निर्देशन में ग्राम पंचायत से लेकर जिला पंचायत से लेकर विधानसभाओं के चुनाव में पूरी ताकत लगाकर ग्राम पंचायतों से लेकर प्रांतीय सरकार पर कब्जा कर लेना चाहती है सत्ता में बैठे हुए लोग शायद यह भूल गए हैं कि जनता की भलाई के लिए ही देश में लोकतंत्र की स्थापना हुई है। और इसी लोकतंत्र की रक्षा के लिए लिखित संविधान का निर्माण हुआ है । यदि कोई कानून या संवैधानिक व्यवस्था ऐसे राष्ट्रीय संकट में चुनाव के लिए बाध्यकारी बनता है तो राष्ट्रीय आपदा के नाम पर उसको स्थगित कर देना चाहिए था। कोई भी कानून वर्तमान को चुनौती नहीं दे सकता विवेक वर्तमान का प्रतिनिधित्व करता है ऐसे किसी संकट की स्थिति में कानून का नहीं विवेक का साथ देना चाहिए कोई भी कानून हमारे लिए है हम कानून के लिए नहीं हैं जिस तरह से सभी प्रत्याशी और दलीय नेताओं ने कोविड-19 से बचने के लिए आवश्यक दिशा निर्देशन की उपेक्षा करते हुए भोली भाली गरीब जनता
को छोटी सभाओं और रैलियों में आमंत्रित कर के अपने बेवकूफी का परिचय दे रहे हैं मौत के मुहाने पर धक्का दे रहे हैं ।जिसे इतिहास माफ नहीं करेगा ।दुख:द आश्चर्य इस बात पर हो रहा है कि हमारे देश माननीय सर्वोच्च न्यायालय इस राष्ट्रीय आपदा को देखते हुए स्वत: संज्ञान में लेकर विवेक शून्य सरकार को अपने आंगन के कटघरे में क्यों नहीं खड़ा किया । सरकारी संसाधनों के अभाव एवं घोर लापरवाही या पूर्व तैयारी के अभाव में जिन कोरोनावायरस व्यक्तियों की मृत्यु हुई है क्या उनके परिवार या शुभचिंतकों या संवेदनशील व्यक्तियों का भरोसा इस देश की संवैधानिक और लोकतांत्रिक व्यवस्था से नहीं उठा रहा है जनता के दुख दर्द को दूर करने के लिए ही तो संसद कार्यपालिका और न्यायपालिका का गठन हुआ है न्यायपालिका भारतीय स्टेट की मस्तिष्क और हृदय है । वर्तमान समय में खड़यंत्रकारी मस्तिष्क का दामन छोड़कर हृदय का दामन थाम लेना चाहिए। वर्तमान समय में राष्ट्रीय आपदा घोषित करके इस महामारी से लड़ने के लिए सभी प्रकार के चुनाव एवं सभी सांस्कृतिक धार्मिक राजनीतिक सभाओं को सभा व क्रियाकलापों को स्थगित कर देना चाहिए यदि हमारी सरकार दूरदर्शिता का परिचय देते हुए पहले ही पूरी तैयारी कर लिए होते तो आज ऐसी दुखद स्थिति देखने को नहीं मिलती। अभी समय है जनता एवं सरकारी कर्मचारियों अधिकारियों को मौत के मुंह में जाने से बचाने के लिए सरकार सचेत हो जाए अन्यथा जनता तांडव नृत्य करने के लिए बाध्य हो जाएगी और सब कुछ देखते ही देखते तहस-नहस हो जाएगा जिसे संभालना मुश्किल हो जाएगा।
वशिष्ठ नारायण सिंह
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