युद्ध विराम: भारत- पाकिस्तान के बीच अमेरिका बना सरपंच!
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-10 मई को डोनाल्ड ट्रम्प के सोशल मीडिया पर भारत- पाकिस्तान के बीच सीज फ़ायर के बयान ने हलचल मचा दिया है,पीएम नरेंद्र मोदी से देश की निराश हो रही जनता का एक बड़ा सवाल ‘किस लाचारी में थमना या रुकना पड़ा, समझौते के टेबिल पर हमारी शर्त क्या होगी?’ इसके अलावा विपक्ष इंदिरा गाँधी और अटल बिहारी वाजपेयी के मुकाबले मोदी के प्रति ‘जन धारणा’ को निचले पायदान पर ढकेल दिया l
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कैलाश सिंह
राजनीतिक संपादक
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लखनऊ/दिल्ली, (तहलका न्यूज नेटवर्क)l कश्मीर घाटी के पहलगाम में 22 अप्रैल को हुई आतंकी घटना में धर्म पूछकर मारे गये 26 हिंदुओं का बदला लेने के लिए पूरा देश उबाल पर था कि हमारी सरकार और पीएम मोदी क्यों शांत पड़े हैं? जब 6- 7 मई की दरम्यानी रात 1.5 बजे महज 25 मिनट में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ से हमारी सेना ने पीओके और पाकिस्तान के नौ आतंकी ठिकानों को तबाह कर दिया तब इसी जनता ने मोदी को सिर माथे पर बिठा लिया, यानी उनके प्रति अवधारणा की टीआरपी शेयर बाजार की तरह आसमान में परवाज़ करने लगी l अब 10 मई को जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का बयान सोशल मीडिया में छाया तो देश की जन धारणा शेयर बाजार के ही सरीखे धड़ाम से ज़मीन पर आ गई l
दरअसल यह कोई हैरत की बात नहीं है, ऐसा किसी भी देश में होता है l नेपाल में राजशाही के दौरान हमने खुद देखा है कि हर दुकान में राजा की तस्वीर भगवान की तरह पूजी जाती थी, उसी तरह लोकतंत्र में जन मानस अपने मुखिया ‘प्रधान मंत्री’ को राजा मानता हैl युद्ध के समय जन विचार ज्वार- भाटा जैसा अप- डाउन होता है l यानी भारत की जनता को ‘सीज फ़ायर’ किस कारण, किसकी मध्यस्थता, किसके दबाव अथवा विवशता में किया गया? इसका जवाब चाहिएl यह भी कि 12 मई को समझौते के टेबुल पर हमारे नुकसान और फायदे के साथ शर्तें क्या होंगी? पाकिस्तान फ़िर आतंकवाद के जरिये हमला नहीं करेगा, इसकी गारन्टी कौन देगा? या फिर वस्तुओं की वारण्टी सरीखा समझौता होगा? ये सारे सवाल लोगों के जेहन में मथ रहा हैl
राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक इतिहास के पन्ने पलटने पर पूर्व पीएम इंदिरा गाँधी ने 1971 में जब पाकिस्तान के दो टुकड़े करके बांग्लादेश बनाया तब युद्ध के दौरान उन्होंने अमेरिकी संपर्क काटे रखा जबकि अमेरिका अपना सातवां बेड़ा पाकिस्तान की मदद में भेज चुका था और भारत से युद्ध रोकने के दबाव की कोशिश में लगा था, लेकिन आयरन लेडी श्रीमती गाँधी अपना लक्ष्य हासिल करने के बाद ही रुकीं l उन्होंने ‘पृथ्वीराज चौहान जैसे मोहम्मद गोरी पर जिस तरह 17 बार दया दिखाई’ उस तरह उन्होंने एक बार भी पाकिस्तान को माफ़ करने की नहीं सोची, अन्यथा आज बांग्लादेश दुनिया के नक्शे में नहीं होताl क्या वाकई मोदी अमेरिकी दबाव में आ गए हैं? सभी सवालों का जवाब 12 मई को मिलेगा! तभी पता चलेगा कि सिंधु जल समझौता स्थगन वाले वॉटर स्ट्राइक, कामर्शियल स्ट्राइक जैसे साइलेंट हमले और ऑपरेशन सिंदूर सरीखे आतंकवाद पर खुले हमले जारी रहेंगे या वह भी थम जाएंगे!
इस मामले में ‘तहलका संवाद’ से हुई बातचीत में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में केंद्रीय गृह राज्य मन्त्री रहे स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती ने कहा कि कारगिल युद्ध के दौरान ‘अटल बिहारी वाजपेयी से अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि ‘सीज फ़ायर कर दीजिए अन्यथा पाकिस्तान परमाणु हमला करेगा, तब वाजपेयी जी ने कहा कि ‘ चलिए हम मान लिए कि भारत की आधी आबादी खत्म हो गई, क्या पाकिस्तान कल का सूरज देख पायेगा? इसका जवाब तब के अमेरिकी राष्ट्रपति विल क्लिंटन के पास नहीं थाl आज सीज फ़ायर का जवाब देना हमारे पीएम नरेंद्र मोदी के लिए जनता की ओर से किया जा रहा यक्ष प्रश्न बनकर गूंज रहा हैl यह सही है कि युद्ध के मामले में अपनी रणनीति कोई सरकार अथवा सेना नहीं बताती और कूटनीतिक भाषा तो जनता की समझ से परे होती है, लेकिन वर्तमान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की तरफ़ से हुए मध्यस्थता और सीज फ़ायर के दावे की जवाबदेही हमारी सरकार और पीएम की होती हैl