आहिस्ता चल जिंदगी,
अभी कई कर्ज चुकाना बाकी है!
कुछ दर्द मिटाना बाकी है,
कुछ फर्ज निभाना बाकी है!!
रफ्तार में तेरे चलने से,
कुछ रुठ गये कुछ छूट गये!
रुठों को मनाना बाकी है,
रोतों को हँसाना बाकी है!!
कुछ रिश्तें बनकर,
टूट गये कुछ जुडते-जुडते छूट गये!
उन टूटें-छूटें रिश्तों के,
जख्मों को मिटाना बाकी है!!
कुछ हसरतें अभी अधूरी हैं,
कुछ काम भी और जरुरी हैं!
जीवन की उलझ पहेली को,
पूरा सुलझाना बाकी है!!
जब साँसों को थम जाना है,
फिर क्या खोना,क्या पाना है!
पर मन के जिद्दी बच्चें को,
यह बात बताना बाकी है!!
आहिस्ता चल जिंदगी,
कुछ कर्ज चुकाना बाकी है!
कुछ दर्द मिटाना बाकी है,
कुछ फर्ज निभाना बाकी है!!
संदीप पाण्डेय-(ईम्युनीटी सलाहकार/चेयरमैन-आईएमसी)