बगैर अधिकार के ही डूडा परियोजना अधिकारी ने सीओ को किया था कार्यमुक्त
सीओ ऊषा राय की शिकायत पर दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री तुरंत लिया एक्शन
परियोजना अधिकारी डूडा अनिल वर्मा लगातार विवादों के घेरे में
जौनपुर। सत्य परेशान हो सकता है किन्तु पराजित नहीं। उक्त कहावत की लाइनें डूडा कार्यालय से कथित तौर पर कार्यमुक्त की गयी सामुदायिक आयोजक ऊषा राय पर सटीक बैठती हैं। विगत एक पखवारे से पीओ डूडा द्वारा बिना अधिकार के कार्यमुक्त किए जाने से परेशान सीओ डूडा ने बुधवार को जनपद में जनसुनवाई कर रहे राज्य महिला आयोग की उपाध्यक्ष सुषमा सिंह के समक्ष न्याय की गुहार लगायी तो उन्होंने तुरंत एक्शन लेते हुए ना सिर्फ परियोजना अधिकारी को बुलाकर फटकारा बल्कि आदेश देते हुए सीओ को कार्यालय में ज्वाइन भी करवाया। बुधवार को मुख्यालय में जनसुनवाई कर रही दर्जा प्राप्त राज्य मंत्री ने सीओ ऊषा राय के प्रार्थना पत्र पर डूडा के परियोजना अधिकारी को तुरंत बुलवाकर मामले की जानकारी मांगी जिस पर पीओ का जवाब सुनकर राज्यमंत्री बिफर पड़ी कि तुम मुझे बरगलाने का प्रयास मत करो। उन्होंने कहा जब तुम्हारे पास सीओ को निकालने का अधिकार नहीं है तो फिर कैसे तुमने ऐसा आदेश बनाया जिस पर पीओ ने डीएम के मौखिक आदेश का तर्क दिया। जिस पर राज्यमंत्री पूरी तरह उखड़ गयी व पीओ को डांटते हुए कहाकि किस जमाने में हो तुम। कोई सरकारी अधिकारी तुम्हे मौखिक आदेश क्यों देगा? मामले में डीएम को क्यों घसीट रहे हो? उन्होंने तुरंत आदेश देते हुए कहा कि सीओ को तत्काल कार्यालय में ज्वाइन करवाईए जिस पर पीओ ने अपनी गलती को स्वीकारते हुए पत्रांक संख्या 482/डूडा/19-20 के द्वारा सामुदायिक आयोजक को कार्यालय में कार्यभारग्रहण करवा दिया।
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लगातार विवादों में रहा है अनिल वर्मा का कार्यकाल
जौनपुर। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अतिमहत्वाकांक्षी आवास योजना शहरी के सफल क्रियान्वयन की जिम्मेदारी डूडा विभाग की है किन्तु गत एक वर्ष पूर्व परियोजना अधिकारी का पदभार ग्रहण करने वाले अनिल वर्मा का कार्यकाल लगातार विवादों से भरा है। विभिन्न अवसरों पर जिलाधिकारी मंत्री व अन्य उच्चाधिकारियों की समीक्षा बैठक में पीओ की कार्यशैली को लेकर विवाद की स्थिति उत्पन्न होती रहती है। विभागीय सूत्रों की माने तो विभाग में अधिकांश कर्मी उनके हिटलरशाही रवैये से दुखी हैं। सूत्रों की माने तो गत वर्ष जनसुनवाई के दौरान पीओ अनिल वर्मा एक उपजिलाधिकारी से कुर्सी पर बैठने को लेकर विवाद कर बैठे। मामला हाथापायी तक पहुंच गया था जिस पर तत्कालीन डीएम अरविंद मलप्पा बंगारी ने हस्तक्षेप करते हुए बीच-बचाव किया व चेतावनी भी जारी की थी। प्रधानमंत्री आवास में सर्वे के नाम पर वसूली किसी से छिपी नहीं है। जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण नवंबर माह में प्रभारी मंत्री उपेन्द्र तिवारी की समीक्षा बैठक में देखने को मिला। जब उन्होंने पीओ को डांटते हुए कहाकि सुना है जो सर्वेयर तुम्हे रूपये वसूलकर नहीं देता तो उसे रिस्टीकेट करवा देते हो। उन्होंने उक्त मामले में डीएम से पीओ को निलंबित करने की भी बात कही थी किन्तु मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। बीते एक पखवारे से चल रहा सीओ का विवाद भी पीओ की इसी अतिमहत्वाकांक्षा का उदाहरण है जिस पर राज्यमंत्री ने अंकुश लगाकर पीड़िता को न्याय दिलाया किन्तु यक्ष प्रश्न यह है कि ऐसे विवादित अधिकारी के विरूद्ध अभी तक कोई कठोर कार्यवाही क्यों नही हुई जबकि लगातार होने वाले विवाद उच्चाधिकारियों व मंत्री के संज्ञान में हैं।











