तूं कहां जा रही हो मुझे छोड़कर
संकल्प सवेरा, जौनपुर। साहित्यकार सामाजिक भावनाओं की अभिव्यक्ति का विश्वसनीय स्रोत होता है। वह जहां एक तरफ समाज और व्यक्ति की समस्याओं को निर्भीकता से उठना है, वहीं दूसरी तरफ शासन और प्रशासन को उसके दायित्वों के प्रति सतर्क भी करता है। शायद यही कारण है कि साहित्य को समाज का दर्पण कहा जाता है।
समाज में व्याप्त नाना प्रकार की विकृति और समस्याओं के प्रति आम आदमी और शासन का कैसा रवैया होना चाहिए, इसे रेखांकित करने का कार्य साहित्यकार ही कर सकता है। इसीलिए साहित्यिक सृजन को समाज की अमूल्य निधि माना जाता है। जब भी समाज में विकृतिया सर उठाती हैं तो उन पर प्रहार करने का कार्य सबसे पहले साहित्यकार ही करता है। उक्त उद्गार साहित्य एवं सांस्कृतिक संस्था कोशिश द्वारा रामेश्वर विहार, रासमंडल में आयोजित पुस्तक लोकार्पण समारोह के भव्य अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में दिनेश टंडन, पूर्व अध्यक्ष, नगर परिषद जौनपुर ने व्यक्त किया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ पी. सी. विश्वकर्मा ने किया। कार्यक्रम का शुभारंभ जनार्दन प्रसाद अस्थाना द्वारा सरस्वती वंदना के साथ हुआ।
पुस्तक लोकार्पण के विशेष समारोह में श्री ओमप्रकाश खरे, रमेश चंद सेठ (आशिक जौनपुरी) और श्री जनार्दन प्रसाद अस्थाना (पथिक जौनपुरी) द्वारा रचित काव्य संग्रहों का विमोचन किया गया। प्रखर जौनपुरी ने आशिक जी के ग़ज़ल संग्रह ‘मोहब्बत करके देखो’, की साहित्यिक समीक्षा किया और उसे एक उत्कृष्ट रचना संग्रह बताया। खरे साहब द्वारा रचित ‘पूर्णिका प्रसून’ पर आर.पी. सोनकर ने अपना विचार व्यक्त किया और उसे एक उपयोगी संग्रह बताया।
गीतकार जनार्दन स्थान के गीत संग्रह ‘तुम गीत बनो मैं गाऊं’ की खूबियों को वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. पी. सी. विश्वकर्मा ने बखूबी रेखांकित किया। इस अवसर पर तीनों रचनाकारों ने भी अपनी- अपनी कृतियों पर प्रकाश भी डाला।
लोकार्पण समारोह सत्र समाप्त होने के पश्चात लघु काव्य पाठ भी आयोजित किया गया। डॉ. पी.सी. विश्वकर्मा का शेर ‘बजुज़ इक प्रेम के सारे जहां में, मुकम्मल कोई भी रस्ता नहीं होता’ लोगों के मन को छू गया। प्रखर जौनपुरी व्यंग्यो पर ठहाके लगते रहे। जनार्दन प्रसाद अस्थाना का गीत ‘तेरी लहरों से है प्यास मेरी जगी’, तूं कहां जा रही हो मुझे छोड़कर, खूब सराही गई। तो वहीं आशिक जौनपुरी की रचना ‘बिताना जिंदगी इतना नहीं आसान होता है’, लोगों को खुशी के साथ जीने हेतु प्रेरित करने सफल रही । ओमप्रकाश खरे की रचना ‘झगड़े मिटाने चले हैं’ भी काफी पसंद की गई। गिरीश श्रीवास्तव ने कहा ‘चुभते हैं करते रहते हैं सुधियों के गु़ल खारों की तरह’ पर पूरा हाल तालियोंं की गड़गड़ाहट से गूंजता रहा। राम जीत मिश्रा की रचना ‘सभी को कोफ्ते सी होती दिखाई पड़ती है, थकन के बाद जब आराम ओढ़ लेता हूं, भी काफी सराही गई। अंसार जौनपुरी ने कहा ‘बातों से ही बन जाती हैं बिगड़ी हुई बातें, बात अपनी सलीके से कहा क्यों नहीं करते’, पर वाह -वाह होता रहा। इस अवसर पर आर. पी. सोनकर, प्रो.आर. एन. सिंह, अम्रित प्रकाश, अनिल उपाध्याय, सुशील दुबे, राजेश पांडे, नंदलाल समीर, फूलचंद भारती, अनिल विश्वकर्मा, संजय सिंह सागर, और ओम प्रकाश पहलवान आदि साहित्यकारों ने भी अपनी प्रस्तुतियों द्वारा कार्यक्रम में चार चांद लगाने का कार्य किया।
लोकार्पण समारोह सत्र का संचालन प्रो. आर. एन. सिंह ने किया, जबकि काव्य पाठ के सत्र का संचालन व्यंगकार प्रखर जौनपुरी ने किया। डॉ. विमला सिंह ने स्वागत किया। इस अवसर पर प्रो. गंगाधर मिश्रा, अशोक भाटिया, शिविस सिंह, आशीष तिवारी, तथा अन्य अनेक सम्मानित लोग उपस्थित रहे। धन्यवाद ज्ञापन सुरेंद्र यादव ने किया।