कसुर
क्या कसूर था मेरा जो आज इतना दर्द मिला ।
जिसे अपना समझा उससे ही आज गिला मिला ।।
ना कभी कोई झूठ बोला ना कोई सच छिपाया ।
फिर भी आज सबने सही को ही गलत बताया ।।
हर किसी को अपना मानना क्या कसूर हैं अब ।
हर किसी को मदद करना क्या कसूर हैं अब ।।
माना कि आज सब मतलब के यार हैं यहाँ ।
फिर भी सच के साथ जीना गलत है कहाँ ।।
हर किसी के चेहरे पे खुशी दिया हमनें ।
हर किसी के जिंदगी में हँसी दिया हमनें ।।
हर किसी से वफ़ा करना भी कसुर हैं इस जहां में ।
हर किसी के लिए खो दिया खुद को इस जहां में ।।
नसीब में नही था इस जीवन मेरा साथ लिखा तुझे ।
तभी तो मेरी हर अच्छाई में बुराई ही दिखा तुझे ।।
बहुत जी लिया दूसरों के लिए इस जीवन में।
अब खुद के लिए जीना है इस जीवन में ।।