क्या है एमएसपी जिसकी मांग पर अड़े किसान, यह किन फसलों पर मिलती है और कैसे होती है तय?
पंजाब के हजारों किसान विरोध प्रदर्शन के लिए दिल्ली पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं। राज्य के किसान संगठनों ने दिल्ली चलो का आव्हान किया है। यह विरोध न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी को लेकर है। किसान एमएसपी के साथ ही स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट लागू करने, लखीमपुर खीरी हादसे पर सख्त कार्रवाई करने जैसी कई अन्य मांगों पर भी अड़े हैं। इससे पहले सोमवार देर रात केंद्र सरकार के मंत्रियों और किसान संगठनों के बीच एक बैठक हुई जिसमें एमएसपी समेत कई मुद्दों पर बात हुई। हालांकि, फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी पर बात अटक गई।
आइये जानते हैं कि न्यूनतम समर्थन मूल्य क्या है? एमएसपी को लेकर किसान क्या मांग कर रहे हैं? सरकार का क्या रुख है?
न्यूनतम समर्थन मूल्य क्या है?
एमएसपी वह निश्चित मूल्य है जिस पर केंद्र और राज्य सरकारें और उनकी एजेंसियों किसानों से खाद्यान्न खरीदती हैं। यह खरीदी केंद्रीय पूल के तहत की जाती है जिसका उपयोग सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) और अन्य कल्याणकारी योजनाओं के तहत खाद्यान्न मुहैया कराने के लिए किया जाता है। इसके अलावा खाद्यान्न को बफर स्टॉक के रूप में आरक्षित भी रखा जाता है। हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में किसानों को सभी प्रकार की फसलों पर एमएसपी की गारंटी देने की मांग की जाती रही है
एमएसपी किन फसलों के लिए लागू है?
केंद्र सरकार कृषि लागत और मूल्य आयोग की सिफारिशों के आधार पर हर साल खरीफ और रबी सीजन से पहले 24 फसलों के लिए एमएसपी अधिसूचित करती है। इन फसलों में अनाज, मोटे अनाज और दालें जैसे खाद्यान्न शामिल हैं। हालांकि, सरकारी खरीद काफी हद तक कुछ खाद्यान्नों जैसे धान, गेहूं और कुछ हद तक दालों तक ही सीमित है। इनमें सबसे ज्यादा खरीद चावल और गेहूं की होती है।
14 खरीफ फसलों के लिए एमएसपी होती है। ये फसलें हैं धान, ज्वार, बाजरा, रागी, मक्का, अरहर, मूंग, उड़द, मूंगफली, सूरजमुखी के बीज, सोयाबीन, तिल, नाइजरसीड (रामतिल) और कपास। वहीं 10 रबी फसलों के लिए एमएसपी दी जाती है। ये फसलें हैं गेहूं, जौ, चना, मसूर, सरसों, कुसुम, टोरिया और अन्य फसलें, कोपरा, भूसी रहित नारियल और जूट।
खाद्यान्नों की खरीद बड़े पैमाने पर कुछ राज्यों में केंद्रित है। देश में सबसे ज्यादा गेहूं का उत्पादन करने वाले तीन राज्य मध्य प्रदेश, पंजाब और हरियाणा इसकी ज्यादातर खरीद करते हैं। वहीं चावल का उत्पादन वाले छह बड़े राज्यों पंजाब, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा और हरियाणा की खरीद में ज्यादातर हिस्सेदारी होती है।
एमएसपी खरीद का असर क्या हुआ है?
केंद्र सरकार की खरीद नीति के अनुसार, सार्वजनिक खरीद का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि किसानों को उनकी उपज के लिए लाभकारी मूल्य मिले। यदि किसानों को एमएसपी की तुलना में बेहतर कीमत मिलती है, तो वे अपनी उपज खुले बाजार में भी बेच सकते हैं।
एमएसपी किसानों को सरकार द्वारा खरीदी जाने वाली फसलें उगाने के लिए प्रोत्साहित करता है। चूंकि गेहूं और चावल पीडीएस के तहत प्रदान किए जाने वाले प्रमुख खाद्यान्न हैं, इसलिए इन फसलों की ज्यादा खरीदी होती है। यही कारण है कि फसलों का उत्पादन गेहूं और धान पर ज्यादा केंद्रित हो जाता है और किसानों को दालों जैसी अन्य वस्तुओं का उत्पादन करने के लिए प्रोत्साहन नहीं मिलता है। इसके अलावा, इससे जल स्तर पर दबाव पड़ता है क्योंकि ये फसलें पानी की अधिक खपत करती हैं
कुछ राज्य सरकारों ने किसानों को धान और गेहूं के अलावा अन्य फसलों के उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए कुछ कदम उठाए हैं। उदाहरण के लिए हरियाणा ने एमएसपी के लिए योजना शुरू की जिससे किसान मक्का, बाजरा, दाल या कपास उगा सके। योजना के तहत विविध फसलों की उपज को राज्य सरकार एमएसपी पर खरीदती है। हरियाणा के अलावा मध्य प्रदेश ने चावल, गेहूं और गन्ने के अलावा कुछ अन्य फसलों में किसानों को एमएसपी देने की शुरुआत की है
एमएसपी को लेकर किसान क्या मांग कर रहे हैं?
पंजाब से दिल्ली कूच कर रहे प्रदर्शनकारी किसानों की मांग है कि केंद्र न्यूनतम समर्थन मूल्य या एमएसपी की गारंटी वाला कानून लाए। दिल्ली कूच से पहले 12 फरवरी को किसानों और केंद्रीय मंत्रियों के बीच बैठक हुई लेकिन इसमें एएसपी जैसी मांगों पर सहमति नहीं बन पाई।
किसान नेता सरवन सिंह पंधेर ने से कहा कि उनकी मुख्य तीन मांगें- एमएसपी की गारंटी, किसानों के कर्ज माफ करने और 60 से अधिक उम्र के किसानों को पेंशन देने पर सहमति नहीं बन सकी
किसानों की मांग पर सरकार का क्या रुख है?
बैठक का हिस्सा रहे केंद्रीय कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा, ‘परामर्श की आवश्यकता है। इसके लिए हमें राज्यों से बात करने की आवश्यकता है। हमें चर्चा करने के लिए एक मंच और समाधान ढूंढने की जरूरत है। भारत सरकार किसानों के हितों की रक्षा करने के लिए बाध्य है। जनता को परेशानी में नहीं डालना चाहिए, किसान यूनियन को इसे समझना चाहिए।’
इससे पहले सोमवार को जालंधर में केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा कि पिछले 10 वर्षों में कांग्रेस की तुलना में भाजपा सरकार ने किसानों के हित में कई अहम फैसले लिए हैं। हमारी सरकार में किसानों की बात सुनी जाती है, मगर कांग्रेस के समय में ऐसा नहीं होता था
अनुराग ठाकुर ने कहा कि किसानों को एमएसपी के नाम पर विरोधी दल भड़का रहे हैं। स्वामीनाथन रिपोर्ट को लेकर भी हमारी सरकार ने कई कदम उठाए। कांग्रेस ने अपने कार्यकाल में कुछ नहीं किया। कांग्रेस सरकार के मुकाबले हमने किसानों से दोगुनी से ज्यादा खरीद की और दाम भी ज्यादा दिए।