…टूटी कश्ती के सहारे है समंदर का सफर
हो चुका विघटन बहुत अब तो संभलना चाहिए:प्रो. आर. एन.सिंह
संकल्प सवेरा, जौनपुर। कोशिश की मासिक काव्य गोष्ठी रामेश्वर प्रसाद सिंह सभागार रासमंडल जौनपुर में आयोजित हुई जिसमें अध्यक्षता उर्दू और हिंद के ख्यात शायर प्रो. पी.सी.विश्वकर्मा और मुख्य अतिथि व्यंग्यकार सभाजीत द्विवेदी प्रखर जी रहे। सरस्वती वंदना के पश्चात रामजीत मिश्र के दो कविता संग्रहों का /वर्षा सबकी माँ/और /विनय प्रसून/का लोकार्पण हुआ।
अमृत प्रकाश का शेर—मैने उसके लिए गुलाब लिया/दोनों हाथों में जिसके छुरी है/खूब पसंद किया गया।समीर की रचना–जिसने दिया गीता का ज्ञान/वही तो है मेरा भगवान/कृष्ण के वैश्विक स्वीकार्यता को रेखांकित कर गई। अनिल उपाध्याय की रचना–शादी के पहले मैं भी शेर था/श्रोताओ को गुदगुदा गई। अंसार जौनपुरी का शेर/टूटी कश्ती के सहारे है समंदर का सफर/इश्क में ये हौसला बेचारगी को मिल गया/पसंद किया गया वहीं संजय सिंह सागर का नज्म..आंसुओं से भरा तुमको मिल जायेगा/देख लो तुम अभी मेरा दिल चीर कर/प्रेम की पीर को रुपायित कर गया तो रामजीत मिश्र की पंक्ति–अंहकार कारण बनता तो क्यों झगड़े होते..गहन संदेश देती लगी।
अशोक मिश्र का गीत–जितनी बहनें,उतने भाई/फिर क्यों चुनरी डरी हुई है/मानवी पर हो रहे बर्बरतापूर्ण कृत्य को रेखांकित कर गया।गिरीश कुमार गिरीश का मुक्तक–सरापा इश्क हूँ,जज्बात हूँ मैं/अकेला ही सही बारात हूँ मैं/सितारे कैद हैं मुठ्ठी में मेरी/कहा किसने की खाली हाथ हूँ मैं/मानव जीवन की जीजिविषा को कह गया।
जनार्दन अष्ठाना पथिक का गीत–‘घुल रहा है जब फिजाओं में जहर/धुंध में डूबा हुआ हर एक शहर/कौन सी है बात इतराएं/सांस लेने हम कहाँ जाएं/जर्जर होती भौतिक वादी सभ्यता का चेहरा दिखा गया।शायर अहमद निसार का शेर—गुफ़्तगू खूब कीजिए लेकिन/एक भी शब्द बेलिबास न हो/समाज में बढ रही असंसदीय भाषा की ओर ध्यान आकृष्ट कर गया। प्रेम जौनपुरी का शेर…गिरते हुए को बढ के उठाना पड़ा मुझे/जर्रो को आफताब बनाना पड़ा मुझे/पर खूब तालियाँ बजीं।
प्रो. आर. एन.सिंह की रचना, हो चुका विघटन बहुत अब तो संभलना चाहिए, जाति मज़हब से इतर मंजर बदलना चाहिए, काफी सराही गई । कमलेश कुमार और ओ.पी.खरे को भी बड़े चाव से सुना गया।संचालन अशोक मिश्र ने और आभार ज्ञापन डाक्टर विमला सिंह ने किया।
प्रेषक
प्रो. आर. एन. सिंह
४५४ राजगढ़ कॉलोनी
परमानतपुर, जौनपुर