संकल्प सवेरा।
आज छोटी सी है तो कल बड़ी होगी
भूख एक दिन सड़कों पर खड़ी होगी
इंसानों की बस्ती में इंसान कहां है अब
इंसानियत तो किसी कोने में पड़ी होगी
तेज धूप में नंगे पैर चलने के बाद भी
वो रोटी न उठा सका जो यूं ही पड़ी होगी
एक मजदूर मां को देख कर ख्याल आया
वो बच्चों के लिए हालातों से लड़ी होगी
बड़ा जुल्म करते है जो खाना फेंक देते है
उनके दरवाज़े पे कोई भूखी खड़ी होगी
मेरे आंसू नहीं रुके फिर ये मंजर देख कर
अमीरों की भूख और कितनी बड़ी होगी
पड़ोसी से एक रोटी भी नही मिली उसे
वो रोटी जो अगले दिन तक सड़ी होगी
खुशनुमा हयात (एडवोकेट/ कवियत्री) बुलंदशहर उत्तर प्रदेश भारत
 
	    	 
                                












