तिरुपति बालाजी (Tirupati Balaji) : . यह मंदिर भगवान विष्णु के अवतार प्रभु वेंकटेश्वर (Venkateswara) या बालाजी (Balaji) को समर्पित है. मंदिर के 700 कर्मचारी कोरोना संक्रमित हैं (Tirupati Balaji workers corona positive) और 3 की मौत हो गई है…
तिरुपति बालाजी (Tirupati Balaji) का मंदिर देश में नहीं बल्कि विदेशों में भी मशहूर है. तिरुपति वेंकेटेश्वर मंदिर तिरुपति में स्थित एक प्रसिद्ध हिंदू एवं जैन मंदिर है. तिरुपति भारत के सबसे प्रसिद्ध तीर्थस्थलों में से एक है. यह आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में स्थित है. प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में दर्शनार्थी यहां आते हैं. यह मंदिर भगवान विष्णु के अवतार प्रभु वेंकटेश्वर (Venkateswara) या बालाजी (Balaji) को समर्पित है. ऐसा माना जाता है कि प्रभु विष्णु ने कुछ समय के लिए स्वामी पुष्करणी नामक तालाब के किनारे निवास किया था. यह तालाब तिरुमाला के पास स्थित है. तिरुमाला- तिरुपति के चारों ओर स्थित पहाड़ियां, शेषनाग के सात फनों के आधार पर बनीं ‘सप्तगिरि’ कहलाती है. श्री वेंकटेश्वरैया का यह मंदिर सप्तगिरि की सातवीं पहाड़ी पर स्थित है, जो वेंकटाद्री नाम से प्रसिद्ध है. इस समय तिरुपति मंदिर इसलिए चर्चा में है क्योंकि मंदिर के 700 कर्मचारी कोरोना संक्रमित पाए गए हैं. लेकिन आज हम हम आपको बताएंगे तिरुपति बालाजी की पौराणिक कथा…
तिरुपति बालाजी की पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, जब असुर और देवताओं ने सागर मंथन किया , तब कालकूट विष के अलावा चौदह रत्न निकले थे. इन रत्नों में से एक देवी लक्ष्मी भी थीं. लक्ष्मी के भव्य रूप और आकर्षण के फलस्वरूप सारे देवता, दैत्य और मनुष्य उनसे विवाह करने हेतु लालायित थे, किन्तु देवी लक्ष्मी को उन सबमें कोई न कोई कमी लगी. अत: उन्होंने समीप निरपेक्ष भाव से खड़े हुए विष्णुजी के गले में वरमाला पहना दी. विष्णु जी ने लक्ष्मी जी को अपने वक्ष पर स्थान दिया.
यह रहस्यपूर्ण है कि विष्णुजी ने लक्ष्मीजी को अपने ह्वदय में स्थान क्यों नहीं दिया? महादेव शिवजी की जिस प्रकार पत्नी अथवा अर्धाग्नि पार्वती हैं, किन्तु उन्होंने अपने ह्वदयरूपी मानसरोवर में राजहंस राम को बसा रखा था उसी समानांतर आधार पर विष्णु के ह्वदय में संसार के पालन हेतु उत्तरदायित्व छिपा था. उस उत्तरदायित्व में कोई व्यवधान उत्पन्न नहीं हो इसलिए संभवतया लक्ष्मीजी का निवास वक्षस्थल बना.
एक बार धरती पर विश्व कल्याण हेतु यज्ञ का आयोजन किया गया. तब समस्या उठी कि यज्ञ का फल ब्रम्हा, विष्णु, महेश में से किसे अर्पित किया जाए. इनमें से सर्वाधिक उपयुक्त का चयन करने हेतु ऋषि भृगु को नियुक्त किया गया. भृगु ऋषि पहले ब्रम्हाजी और तत्पश्चात महेश के पास पहुंचे किन्तु उन्हें यज्ञ फल हेतु अनुपयुक्त पाया. अंत में वे विष्णुलोक पहुंचे. विष्णुजी शेष शय्या पर लेटे हुए थे और उनकी दृष्टि भृगु पर नहीं जा पाई. भृगु ऋषि ने आवेश में आकर विष्णु जी के वक्ष पर ठोकर मार दी. अपेक्षा के विपरीत विष्णु जी ने अत्यंत विनम्र होकर उनका पांव पक़ड लिया और नम्र वचन बोले- हे ऋषिवर! आपके कोमल पांव में चोट तो नहीं आई? विष्णुजी के व्यवहार से प्रसन्न भृगु ऋषि ने यज्ञफल का सर्वाधिक उपयुक्त पात्र विष्णुजी को घोषित किया. उस घटना की साक्षी विष्णुजी की पत्नी लक्ष्मीजी अत्यंत क्रुद्व हो गई कि विष्णुजी का वक्ष स्थान तो उनका निवास स्थान है और वहां धरतीवासी भृगु को ठोकर लगाने का किसने अधिकार दिया? उन्हें विष्णुजी पर भी क्रोध आया कि उन्होंने भृगु को दंडित करने की अपेक्षा उनसे उल्टी क्षमा क्यों मांगी? परिणामस्वरूप लक्ष्मीजी विष्णुजी को त्याग कर चली गई. विष्णुजी ने उन्हें बहुत ढूंढा किन्तु वे नहीं मिलीं.
अंतत: विष्णुजी ने लक्ष्मी को ढूंढते हुए धरती पर श्रीनिवास के नाम से जन्म लिया और संयोग से लक्ष्मी ने भी पद्मावती के रूप में जन्म लिया. घटनाचक्र ने उन दोनों का अंतत: परस्पर विवाह करवा दिया. सब देवताओं ने इस विवाह में भाग लिया और भृगु ऋषि ने आकर एक ओर लक्ष्मीजी से क्षमा मांगी तो साथ ही उन दोनों को आशीर्वाद प्रदान किया.
लक्ष्मीजी ने भृगु ऋषि को क्षमा कर दिया किन्तु इस विवाह के अवसर पर एक अनहोनी घटना हुई. विवाह के उपलक्ष्य में लक्ष्मीजी को भेंट करने हेतु विष्णुजी ने कुबेर से धन उधार लिया जिसे वे कलियुग के समापन तक ब्याज सहित चुका देंगे. ऐसी मानता है कि जब भी कोई भक्त तिरूपति बालाजी के दर्शनार्थ जाकर कुछ चढ़ाता है तो वह न केवल अपनी श्रद्धा भक्ति अथवा आर्त प्रार्थना प्रस्तुत करता है अपितु भगवान विष्णु के ऊपर कुबेर के ऋण को चुकाने में सहायता भी करता है. अत: विष्णुजी अपने ऐसे भक्त को खाली हाथ वापस नहीं जाने देते हैं. (Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य जानकारी पर आधारित हैं. Hindi news18 इनकी पुष्टि नहीं करता है. इन पर अमल करने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से संपर्क करें.)