बिहार के कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत यूनिवर्सिटी (KSDSU) से प्रकाशित ‘ग्रहण माला’ पुस्तक में सूर्य और चंद्र ग्रहणों का जो वर्णन है, वह 1542 शकाब्द (शक संवत) से 2630 शकाब्द तक का वर्णन किया गया है.
पटना. कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय (Kameshwar Singh Darbhanga Sanskrit University) बिहार के दरभंगा में एक ऐसी पुस्तक है, जिसमें 1088 वर्षों तक सूर्य और चंद्र ग्रहणों की गणना की गई है. ये आने वाले करीब 708 वर्षों में लगने वाले सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण के बारे में लगभग सटीक जानकारी देती है. राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित विश्वविद्यालय के भूतपूर्व प्राध्यापक व कुलपति रामचंद्र झा के अनुसार ‘ग्रहण माला’ (Grahan Mala) नाम की ये पुस्तक 400 साल पहले लिखी गई थी. इसमें लगभग 1100 वर्षों तक लगने वाले सूर्य और चंद्र ग्रहण (Solar and Lunar Eclipse) के बारे में गणना की गई है. इसके रचयिता महामहोपाध्याय हेमांगद ठाकुर हैं.
2708 वर्षों तक के ग्रहणों की गणना वाली किताब
भूतपूर्व कुलपति रामचंद्र झा ने बताया कि इस पुस्तक की गणना लगभग सही है. ‘ग्रहण माला’ पुस्तक में सूर्य और चंद्र ग्रहणों का जो वर्णन है वह 1542 शकाब्द (शक संवत) से 2630 शकाब्द के बीच का है. अभी 2020 ईस्वी है और 1942 शकाब्द. मतलब दोनों की अवधि में 78 वर्ष का अंतर होता है. यानी इस पुस्तक में 1620 ईस्वी से 2708 ईस्वी तक के 1088 वर्ष तक लगने वाले ग्रहणों के बारे में बताया गया है.
400 वर्ष पूर्व लिखी गई किताब
रामचंद्र झा ने बताया कि ये पुस्तक दरभंगा संस्कृत विवि के प्रकाशन विभाग से प्रकाशित भी है. इस पुस्तक में ग्रहणों की सूची है. हालांकि कहीं-कहीं अंकित गणना में थोड़ा अंतर है, लेकिन उसके कई कारण हो सकते हैं. एक तो बड़ा कारण ये है कि 400 वर्ष से अधिक पुरानी पुस्तक है. उस वक्त लिखने की विधि और किसने इसे लिपिबद्ध किया, इस पर भी निर्भर करता है.
किताब के रचयिता थे हेमांगद ठाकुर
बता दें कि महामहोपाध्याय महेश ठाकुर के पौत्र और गोपाल ठाकुर के पुत्र हेमांगद ठाकुर का जीवन काल 1530 से 1590 के बीच है. इसी अवधि में ये पुस्तक लिखी गई है. ये दरभंगा राजपरिवार के सदस्य थे. उसी बीच में ग्रहण माला लिखी गई. बता दें कि कामेश्वरसिंह-दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय बिहार का एक विश्वविद्यालय है. इसकी स्थापना 26 जनवरी 1961 को हुई.
दरभंगा महाराज के नाम पर है यूनिवर्सिटी
इस विश्वविद्यालय की स्थापना दरभंगा के महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह के योगदान के कारण दरभंगा में हुई. इसलिए इसके साथ कामेश्वर सिंह का नाम भी उनके सम्मान में जुटा हुआ है. यह विश्वविद्यालय भारतीय विश्वविद्यालय संघ का एक सदस्य और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से मान्यता प्राप्त है. यह बिहार राज्य का प्रथम तथा भारत का दूसरा संस्कृत विश्वविद्यालय है.