सुबह का सूरज कुछ बोल रहा है
काले-काले बादलों के बीच से, निडर-निर्भय हो,
सूरज अपनी छोटी-छोटी किरणों के पंख खोल रहा है।
अंधरों की कालिख हटा, सुंदर-सुनहरी धूप बिखेर कर,
खमोशी के संग सुबह का सूरज कुछ बोल रहा है।।
कल जो होना था हो गया, आज नई शुरुआत करो,
वक्त भी जीवन में, कुछ नए नए रास्ते खोल रहा है।
नया सवेरा, नई उम्मीदें , नई उड़ान, नई पहचान बनाओ,
जाओ फिर कोशिश करो, आज ये सबसे बोल रहा है।।
मैं रोज नया सवेरा लाऊंगा, तूम हिम्मत न हारना,
नई उमंग, नई आशा, नई उम्मीदों के पट सारे खोल रहा है।
हालातों का रोना बंद करो, उठो, जाओ, पंख फैलाओ,
सुबह का सूरज नए पल के संग आकर बोल रहा है।।
लेखिका – डॉ सरिता चन्द्रा( छत्तीसगढ़)