अहिंसा और स्वच्छता के अग्रदूत रहे है राष्ट्रपिता !
रिपोर्ट:. पंकज कुमार मिश्रा
एडिटोरियल कॉलमिस्ट
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संकल्प सवेरा। दो अक्टूबर को देश स्वच्छता के सबसे बड़े ब्रांड एंबेसडर और अहिंसा के वास्तविक प्रतिरूप महात्मा गांधी जी का जन्मदिवस मनाया जाता है । राष्ट्र के प्रति कर्तव्यनिष्ठा और साधारण स्वभाव ही एक व्यक्ति को राष्ट्रपिता बना सकती है ।
देश में गुलामी के समय बिना किसी हिंसा के समर्थन के एक बड़े जनसैलाब के साथ कठिन समय में देश क़ी स्वंत्रता के लिए बिगुल फूंकना ही राष्ट्रपिता होने का प्रमाण है । आज समाज में एक धड़ा ऐसा भी है जो गांधी जी के योगदान से सहमत नहीं और गोडसे समर्थन की बात करता है किन्तु ऐसे लोग बेशक ये भूल चुके है कि स्वतंत्रता में गोड़से का नहीं गांधी जी का योगदान है ।

स्वच्छता और अहिंसा के अनुयाई से स्वच्छता की सीख लेने के बजाय गोडसे समर्थन के नाम पर राष्ट्रीय पर्व का विरोध बेहद खेदजनक और गलत है ।
आज अपने – अपने राम की बात चल रही , व्यक्तिगत अभियान, वर्चस्ववाद, जातिवाद, वर्णवाद, लैंगिक पक्षपात, आर्थिक असमानता, सांस्कृतिक पराजय की लहर है जिसके विरुद्ध गांधी जी का दर्शन अतुलनीय है ।
मैं उस व्यक्ति का स्वागत करता हूं जो मेरे किसी कथन को पूरे संदर्भ में रखते हुए यह सिद्ध करे कि मैंने ऊपर कोई भी ऐसी बात कही है, जो इस कसौटी पर खरी नहीं उतरती। पहले मैं यह था और अब यह हो गया हूूं। मैं अपनी उपेक्षा और लोगो के मानसिक बीमारी की अवस्था में भी लिखने की बेचैनी की चर्चा करके गांधी जी के दर्शन से अपने सानिध्य को प्रकट करना चाहूंगा।

गांधी जी को आठवीं कक्षा तक मेरे गांव के पाठ्य पुस्तकों में शामिल किया गया , भारतीय सदन पुस्तकालय मैं उपलब्ध उनकी कृतियों को जितना पढा था उससे उनके सादे जीवन के बारे में बहुत कुछ जानने को मिला । वह मेरे प्रेरक नहीं हो सकते थे किन्तु मेरे लिए स्वच्छता के अग्रदूत हमेशा रहेंगे ।
आर्थिक चिंताओं से लेकर सामाजिक और सांस्कृतिक चिंताओं तक दोनों में कितनी समानता थी। अंतर एक ही कि मुझमें वह गांधी जीवित था जो मानता था कि अन्याय के साथ जीने से अच्छा है मर जाना। अपनी जिंदगी की परवाह ही नहीं। अंतर केवल इतना है कि मैंने उतनी दुर्गति और सद्गति नहीं पाई जो प्रेमचंद को अपने जीवन काल में मिली।एक मोटी सी बात करूं,
इस बहस में बौखला कर शामिल होने वालों में कितनों को पता है कि यह हिंदू और मुसलमान की समस्या नहीं है, उमरा और अवाम की समस्या है। अभिजात तंत्र और सर्वहारा की समस्या है। मजहब का फर्क था और आज भी है, पर नफरत का कारोबार अंग्रेजों ने कैसे आरंभ किया और उसका लाभ उठाते हुए मुस्लिम उमरा ने उनका खिलौना बन कर अपने ही देश का अपने समाज का कितना नुकसान किया, विचार का केंद्रीय विषय यह है,
और उसी में आता है कि प्रगतिशील लेखक संघ के झंडाबर्दार हमारे समाज के झंडाबर्दार नहीं थे। वेअभिजात वर्ग के हित में जो कुछ कर रहे थे उसे समझने का एक प्रयास है गांधी दर्शन ।
___ पंकज कुमार मिश्रा एडिटोरियल कॉलमिस्ट शिक्षक एवं पत्रकार केराकत जौनपुर ।