जुबा खामोश है, और निशब्द हूं, मानव की पशुता से मैं स्तब्ध हूं। काहे की आधुनिकता काहे का विकास, कागजों की देवी जल रही है आज। कब तक जलना है, बता दो हे पढ़े लिखे, चीख-चीख कर मरने पर कुछ तो बोलो इंसानों, किसी की बेटी गई और गई किसी की बहन, कितनी निर्भया कितनी प्रियंका? कितने चीखे कितने दहन? जाहिलो के जहिलेपन पर, मैं निशब्द हूं, मानव की प्रसूता से मैं स्तब्ध हूं।