विवेक चौबे
मैत्रेया अस्पताल ट्रान्सरेडियल इन्टरवेन्शन और रेडियल लॉन्ज द्वारा हार्ट के उपचार के लिए नया रूप है
हार्ट अटैक के मरीजों की सुरक्षा के लिए व्रिस्ट (कांडा) रूट मार्फत हार्ट प्रक्रिया करने का ग्लोबल ट्रेन्ड
सूरत। हार्ट अटैक के चलते अस्पताल में भर्ती अधिकतर मरीजों में अधिक रक्तस्त्राव होने का खतरा अधिक होता है। सूरत की मैत्रेया मल्टी सुपर स्पेशियालिटी अस्पताल के चीफ इन्टरवेन्शनल कार्डियोलॉजिस्ट और सीएमडी डॉ. नरेन्द्र तंवार के रिपोर्ट में यह बाहर आया है।
डॉ. तंवार के मुताबिक हार्ट अटैक के मरीजों की मेडिकल इतिहास का निरीक्षण में पता चला है कि वरिष्ठ उम्र गु्रप, महिला, डायाबिटिस, हायपर टेन्शन, मेदस्विता, किडनी डिफंक्शन के 70 फीसदी मरीजों में ब्लिडिंग (रक्तस्त्राव)होने का खतरा अधिक होता है।
यूरोपियन सोसायटी ऑफ कार्डियोलॉजी वर्किंग ग्रुप के सदस्यों द्वारा पब्लिश यूरोपियन हार्ट जनरल के मुताबिक एक्युट कोरोनरी सिन्ड्रोम (तीव्र रक्तवाहिनी लक्षण) वाले मरीजों में रक्तस्त्राव नोंदपात्र समस्या के तौरपर उभर आता है। जो निदान, उपचार और खर्च संबंधित बातों पर अहम असर करता है। सबूत के मुताबिक दर्ज किया गया है कि पीसीआई बाद मरीजों में मेजर ब्लिडिंग का खतरा अधिक बढ़ जाता है। लेकिन ट्रान्स रेडियल प्रक्रिया मार्फत ब्लिडिंग का खतरा दूर किया जा सकता है। डॉ. तंवार सूरत में मैत्रेया मल्टी सुपरस्पेशियालिटी अस्पताल में प्रथम रेडियल लाउन्ज का ओपनिंग किया है।
डॉ. तंवार ने एक्युट कोरोनरी सिन्ड्रोम तथा हार्ट अटैक के मरीजों का हार्ट फेल का खतरा खोजने और उसके निवारण के लिए एन्जियोप्लास्टी, एन्जियोग्राफी जैसी सर्जरी में से गुजरने की सलाह देते है। सर्जरी कांडा में रेडियल आर्टरी मार्फत अथवा फेमोरल आर्टरी केथेटर बैठाया जाता है। केथेटर बिठाते समय धमनी में पंक्चर करने की जरूरत पड़ती है। इसमें ब्लिडिंग खतरे से उभर सकते है।
डॉ. तंवार ने बताया कि 76 अध्ययन का मेटा एनालिसिस करने के बाद निकले तारण के मुताबिक फेमोरल और ग्रोइन रूट की अंतर 7,61,919 मरीजों में कांडा और ट्रान्सरेडियल रूट मार्फत ब्लिडिंग में 78 फीसदी और ट्रान्सफ्युसन में 80 फीसदी का गिरावट देखने को मिला है। इसके अलावा कांडा मार्फत सर्जरी करने से मरीजों का उपचार खर्च घटता है। हॉस्पिटलाइज्ड में भी गिरावट के साथ रिकवरी और मरीज को अनुकूल रहता है।
अध्ययन में डॉ. तंवार और उनकी मेडिकल टीम ने हार्ट अटैक के चलते अस्पताल में भर्ती हो ऐसे 240 विषयों के मेडिकल रेकॉड्स पर अध्ययन किया था। डायाबिटिस, हायपरटेन्शन, मेदस्विता में इसका खतरा क्रमशा 36 फीसदी, 49 फीसदी और 70 फीसदी, खून को पतला करने की एस्पिरिन दवा लेनेवाले 20 फीसदी मरीजों में 30 फीसदी महिला मरीज और 55 वर्ष से अधिक उम्र वाले 70 फीसदी लोगों में अधिक खतरा देखने को मिलता है।
कार्डियोवास्क्युलर बीमारी विशेष करके कोरोनरी हार्ट बीमारी (सीएचडी) की मात्रा भारत में अधिक है। द रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इन्डिया के रिपोर्ट अनुसार 2010-2013 में कुल मृत्युदर में 23 फीसदी मृत्यु सीएचडी के चलते दर्ज हुए थे। इसमें 32 फीसदी किशोर शामिल है। शहरी बस्ती में सीएचडी की मात्रा 9 से 10 फीसदी है। ग्रामीण बस्ती में 4 से 6 फीसदी बस्ती में सीएचडी देखने को मिलता है।