ऊंट की सवारी करवाना बना रोजगार का साधन
संकल्प सवेरा जौनपुर आज की सड़कों पर फर्राटा भरती मोटर- गाड़ियों ने बैलगाड़ी, ऊंट की सवारी और उनसे सामान ढोने की प्रथा को गुजरे ज़माने की चीज बना दिया है। बैलगाड़ी और ऊंटगाड़ी के दर्शन आज के समय में लगभग मुश्किल है,यदा कदा तांगा दिख जाते हैं। ऐसे में दुर्गागंज (अभोली) के एक परिवार ने रोजगार के साधन के रूप में एक नया तरीका खोज निकाला है। वे ऊंट को पाल कर उसे सजा-धजा कर कस्बों और गांवों में घूमते हैं। लोग ऊंट की सवारी करते हैं और बदले में ऊंट पालक को अनाज और पैसे दे दिया करते हैं। आज कल सोशल मीडिया पर सेल्फी और फोटो शेयर करने का क्रेज है
युवा और बच्चे एक बार ऊंट पर सवार होकर फोटो खिंचवाने में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं।बस इसी फ़ैशन का बाजारीकरण करने के लिये ये लोग एक जगह से दूसरी जगह टहलते रहते हैं। बीते दिनों में ये लोग जंघई और बंधवा बाजार के आस पास के बामी, भटेवरा, चितांव, मोलनापुर,गोधना , बभनियांव आदि गांवों में घूमते हुए नजर आ जा रहें हैं। इस बहाने आज की पीढ़ी जिसको बड़ी मुश्किल से ऊंट के दर्शन होते हैं उसे ऊंट की सवारी का अवसर मिल पा रहा है। उल्लेखनीय है कि राजस्थान पर्यटन की दृष्टि से भारत का एक अग्रणी राज्य है और वहां आने वाले देशी – विदेशी पर्यटक ऊंट की सवारी करना पसन्द करते हैं। मैदानी इलाकों में इस परिवार का ऊंट की सवारी कराने का यह प्रयास लीक से हटकर है।