19 जून को राहुल गांधी 50 साल के हो गए हैं. उनका जन्म दिल्ली में 1970 में हुआ था.वो देश के सबसे प्रसिद्ध गांधी-नेहरू परिवार से ताल्लुक रखते हैं. राहुल के बारे में बहुत कुछ ऐसा है, जो खबरों में कम सामने आया है.
कांग्रेस नेता राहुल गांधी आज 50 साल के हो गए हैं. यानि उन्होंने अपनी जीवन की हाफसेंचुरी लगा ली है. कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के बेटे राहुल वर्ष 2004 में राजनीति में आए थे. पिछले साल लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की हार के बाद उन्होंने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था लेकिन कांग्रेस की राजनीति अब भी उनके इर्द-गिर्द भी घूमती है.
राहुल गांधी से जुड़ी कुछ उन बातों पर डालते हैं नजर, जो आमतौर पर कम मीडिया में आती है. ऐसी ही 10 खास बातें
1. राहुल गांधी, गांधी परिवार के सबसे पढ़े-लिखे शख्स हैं. उन्होंने कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के ट्रिनिटी कॉलेज से डेवलपमेंट इकॉनॉमिक्स में एम.फिल किया है. पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने कुछ सालों तक एक प्रबंधन कंपनी में काम भी किया. फिर वो भारत लौट आए.
2. जनवरी 2004 में पहली बार राहुल गांधी अमेठी गए. यह उनके पिता का लोकसभा क्षेत्र था. पूर्व पीएम राजीव गांधी अमेठी से चुनाव लड़ते थे. तब उस सीट पर मां सोनिया गांधी सांसद थीं. जब उन्होंने अमेठी का दौरा किया तब साफ हो गया कि वो राजनीति में उतर रहे हैं. मार्च 2004 में राहुल ने लोकसभा चुनाव 2004 लड़ने की घोषणा की. हालांकि जनवरी में उन्होंने कहा था, “मेरा राजनीति में आना अभी तय नहीं है.”
3. अपने जीवन के पहले चुनाव में राहुल ने अमेठी से करीब तीन लाख वोटों से बड़ी जीत हासिल की. राहुल गांधी को पहले चुनाव में 3,90,179 वोट मिले. उनके निकटतम प्रतिद्वंदी बीएसपी के चंद्र प्रकाश मिश्रा को 9,326 वोट और बीजेपी के राम विलास वेदांती को 55,438 वोट मिले.
4. साल 2004 में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) की सरकार बनी. राहुल गांधी युवा नेता के तौर पर स्थापित हुए. जनवरी 2006 हैदराबाद में कांग्रेस का एक सम्मेलन चल रहा था. इसमें हजारों युवा कांग्रेसी कार्यकर्ता व नेता चाहते थे कि वो पार्टी में बड़ी भूमिका लें. राहुल ने तब बड़ा पद लेने से मना दिया.
5. साल 2007 में उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनावों के दौरान राहुल गांधी ने कुछ जगहों पर चुनाव प्रचार किया. उन्होंने कहा कि अगर बाबरी मस्जिद विध्वंस के वक्त अगर गांधी परिवार का कोई शख्स राजनीति में प्रमुख रूप से सक्रिय होता तो ऐसा नहीं होता. राहुल के इस बयान को तब विपक्षी पार्टी बीजेपी ने प्रमुख मुद्दा बनाया. एम वेंकयानायडू लगातार उनपर प्रहार करते रहे. कई मौकों पर उन्होंने राहुल के इस बयान को पीवी नरसिम्हा राव के साथ हिंदू विरोधी बताया.
6. साल 2008 में यूपी की मुख्यमंत्री मायावती ने राहुल को चंद्रशेखर आजाद कृषि विश्वविद्यालय में छात्रों के सामने संबोधन की अनुमति नहीं दी. तब वो राष्ट्रीय मीडिया में बड़ी खबर बने. इसी घटना के कुछ दिनों बाद प्रदेश के राज्यपाल टीवी राजेश्वर ने विवि के कुलपति वीके सूरी को हटा दिया. इसे राहुल की ताकत से जोड़कर देखा गया.
7. साल 2009 आम चुनावों में राहुल दोबारा अमेठी से चुनाव में मैदान में कूदे. उन्होंने प्रतिद्वंदी को तीन लाख से ज्यादा वोटों से हराया. उनके निकटतम प्रतिद्वंदी बीएसपी के आशीष शुक्ला को 93,997 वोट मिले थे. जबकि 71.78 फीसदी वोटों के साथ राहुल गांधी को 4,64,195 वोट मिले.
8. लोकसभा चुनाव 2009 में यूपीए 2 की सरकार बनी. राहुल गांधी पार्टी में युवा नेता के तौर पर प्रमुख चेहरे बन चुके थे. तब राहुल के पीएम पद पर ताजपोशी पर पार्टी में ही सहमति नहीं बन पाई. ऐसा जिक्र कई किताबों में बाद में किया गया. हालांकि कांग्रेस ने हमेशा ऐसी बातों को कोरी कल्पना ही बताया.
9. जनवरी 2013 में राहुल गांधी को कांग्रेस पार्टी के उपाध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंपी गई. तब उन्होंने कहा, “कल रात मां मेरे कमरे में आईं, वो मेरे पास बैठी और रोने लगी. वो इसलिए रोई क्योंकि जो ताकत बहुत लोग पाना चाहते हैं वो असल में जहर है. राहुल ने कहा कि सत्ता की ताकत का अच्छा और बुरा दोनों असर पड़ता है। हमें अच्छे को साथ रखना है.”
10. साल 2014 के आम चुनाव में यूपीए की करारी हार हुई. कांग्रेस पार्टी 44 सीटों पर सिमट गई. तब विरोधियों ने उन्हें सबसे ज्यादा निशाने पर रखा. हालांकि राहुल अमेठी की सीट बचाने में कामयाब रहे. लेकिन बीजेपी उम्मीदवार स्मृति ईरानी ने कड़ी टक्कर दी. राहुल के 4,01,651 वोटों की तुलना में स्मृति को 3,00,748 वोट मिले. यहीं से लगने लगा कि अमेठी का किला राहुल के लिए खिसकने लगा है साथ ही कांग्रेस पार्टी का भी पतन इसी चुनावों के साथ शुरू हो चुका था.
देश में कांग्रेस पार्टी के लिए चल रहे कठिन दिनों में दिसंबर 2017 में राहुल गांधी को अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंपी गई. लोकसभा चुनाव 2019 में वो कांग्रेस को उबार नहीं पाए बल्कि कांग्रेस को फिर बुरी पराजय का सामना करना पड़ा है. खुद राहुल अमेठी से अपनी सीट नहीं बचा पाए. हालांकि वायनाड से सात लाख वोटों से कहीं ज्यादा अंतर से जीत के साथ वो लोकसभा में जरूर पहुंचने में कामयाब रहे.