मौके सीमित हो और आकांक्षाएं बड़ी हो तो संघर्ष बड़ा हो जाता है- डिप्टी जेलर विजयलक्ष्मी
मुंगराबादशाहपुर,संकल्प सवेरा। एक सामान्य परिवार की बेटी का समाजिक बेड़ियों को तोड़ना आसान नही होता।शिक्षा के प्रति झुकाव और कुछ कर गुजरने की चाह ने विजय लक्ष्मी साहू को एक ऐसा मुकान दिया जो आज की बेटियों के लिए प्रेरणास्रोत है।नगर की गल्लामन्डी मुहल्ले की रहने वाली विजय लक्ष्मी साहू आज सीतापुर मे डिप्टी जेलर पद पर तैनात है।वह कहती है मौके सीमित हो और महत्वाकांक्षाऐं बड़ी हो तो संघर्ष बड़ा हो जाता है।खास तौर पर महिलाओं को घर के दहलीज के बाहर कदम रखना और भी मुश्किलों भरा होता है।शिक्षा के प्रति लगाव हमेशा से रहा इसलिए बीएड भी किया।कुछ कर गुजरने की चाहत थी लेकिन पैसे का आभाव था फिर भी हिम्मत नही हारी।कभी कभी एक वक्त का भोजन मिलता लेकिन उम्मीदों को धूमिल नही होने देती लगातार आगे बढ़ती रही माता मीना देवी,पिता माता प्रसाद ने मेरे बुलन्द हौसलों को देखकर थके नही मेरा साथ देते रहे और फिर मुझे मेरी मन्जिल मिल गई।कहती है जेल मे दुर्दान्त अपराधी भी आते है दिन रात आमना सामना होता है लेकिन कभी डरती नही बल्कि उनके सामने अपने विल पावर को और बढ़ा लेती हूं।आज की बेटियों को बेड़ियो से नही बल्कि उनके हौसलों को बढ़ाने की जरूरत है।महिला दिवस तभी सार्थक है कि जब हम यह प्रण करलें कि बेटियों को भी बेटों के बराबर ही मान सम्मान और उंचा दर्जा देगे।
विशेष संवाददाता जय प्रकाश तिवारी












