जेड हुसैन (बाबू)
जौनपुर। किसी ने ठीक ही कहा है कि मुफ़लिसी है कि जीने नही देती, ये लाइन बिल्कुल सटीक बैठती है इस छोटी सी बच्ची पर जिसे आप फ़ोटो में देख रहे हैं। भंडारी मुहल्ले की तरफ बहुत सी झोपड़िया आपको दिख जाएंगी जिनमे वो लोग रहते हैं जिन्हें किस्मत ने जीने के लिए मुख़्तसर सा मौका दिया है।
इन गरीबो तक सरकार की योजनाएं पहुँचने से पहले ही दम तोड़ देती हैं। इन्ही झोपडी मे रहने वाली एक मासूम को नगर के ओलन्दगंज में देखा गया जो छोटी सी उम्र मे दो जून की रोटी के लिए कूडो मे अपना भविष्य देख रही थी। जब इस मासूम से पूछा गया कि आप पढ़ती नही तो हँसती हुई बोली पढूंगी तो खाना कैसे मिलेगा। उसकी मासूम सी बात ऐसी की दिल मे उतर जाए। अफसोस की बात है कि जिले में बड़े-बड़े अधिकारी हैं, नेता है और तथाकथित सामाजिक संस्थाएं है जो दर्जनों की संख्या मे है लेकिन उनकी नजर इन गरीबों तक नही पहुँचती और किसी एकाक पर पड़ भी गयी तो कैमरे से फ़ोटो ले-लेकर उसे जलील करने का कोई मौका नही छोड़ते। कई ऐसे सामाजिक संग़ठन है जो मात्रा मनोरंजन के लिए है, कागजो और न्यूज़ पेपरों मे ये गरीबो की खूब मदद करते है लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है। इन सामाजिक संगठनो का काम है पार्टी करना और फोटोबाज़ी। कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है मुफ़लिसी है कि जीने नही देती।












