मानसिक स्वास्थ्य की समस्या एक वैश्विक चुनौती:आर एन सिंह
पूर्व प्रोफेसर मनोविज्ञान, विभाग काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी
संकल्प सवेरा, जौनपुर। कभी यह कहावत प्रचलन में थी कि यदि शरीर चंगा है तो मन भी चंगा रहेगा। परंतु स्वास्थ्य को लेकर यह धारणा एकांगी है। क्योंकि व्यक्ति को पूर्ण रूप से स्वस्थ रहने के लिए तन और मन दोनों ही दृष्टियों से ठीक रहना होगा। कभी-कभी देखने को मिलता है कि किसी व्यक्ति का शरीर तो ठीक है, परंतु वह मन से स्थिर नहीं है, और नाना प्रकार की मानसिक परेशानियों से जूझ रहा है। इसीलिए कहा जाता है कि व्यक्ति को पूर्ण रूप से स्वस्थ रहने के लिए उसके तन और मन दोनों को स्वस्थ रहना चाहिए। आज शारीरिक बीमारियों का बोझ कोई देश जितना ढो रहा है, उससे कहीं अधिक लोग मानसिक समस्याओं या मनोरोगों से ग्रस्त हैं। आज पूरा विश्व मनोरोग के चपेट है, शायद यही कारण है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन पूरी दुनिया के लोगों को मानसिक स्वास्थ्य के प्रति सतर्क रहने के लिए विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस मनाने की बात करता है, और पूरे संसार में 10 अक्टूबर के दिन आम जनमानस में मानसिक समस्याओं के प्रति चेतना पैदा करने के लिए विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
समस्या की गंभीरता- यदि हम कुछ आंकड़ों पर गौर करें तो मानसिक स्वास्थ्य की गंभीरता का अनुमान बहुत सरलता से लगा सकते हैं। लगभग 10% से अधिक लोग भारत में मानसिक समस्याओं का सामना कर रहे हैं, 15% वयस्क ऐसे हैं जिन्हें सक्रिय उपचार की आवश्यकता है। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर आने वाले 20 से 45% लोग अवसाद, चिंता, भय, मनोग्रस्तिबाध्यता (ओ. सी. डी.), एवं नींद आदि की समस्या से ग्रस्त हैं। भारत जैसे देश में लगभग एक लाख पैंसठ हजार लोग हर साल आत्महत्या कर रहे हैं। यदि वैश्विक स्तर पर देखें तो पता चलेगा कि लगभग 7 लाख लोग हर साल आत्महत्या को अपनी समस्याओं का समाधान मान लेते हैं। समाज में अशांति एवं हिंसा, द्वेष, ईर्ष्या, अपहरण एवं बलात्कार और भ्रष्टाचार जैसी जो राक्षसी प्रवृत्तियां आज देखने को मिलती हैं, निश्चित रूप से इसमें मानसिक स्वास्थ्य की समस्या उत्तरदाई होती है। परंतु, अफसोस की बात है कि हमारे देश में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को लेकर बहुत कम लोग आज भी गंभीर, और ऐसे भी अनेक लोग हैं जो इसे एक बीमारी मानने के बजाय आदमी के पूर्व जन्म के कर्म का फल मानते हैं। हमारे समाज में यह कलंक के रूप में देखा जाता है। हमें यह मानना चाहिए कि यह भी एक प्रकार की बीमारी है और इसका भी इलाज संभव है।
हमारी तैयारी – सच पूछिए तो मानसिक रोगों की समस्या बहुत विकराल है, और इस गंभीर चुनौती का सामना करने के लिए हमारे पास संसाधनों की नितांत कमी है। हमारे यहां प्रति एक लाख व्यक्ति पर मात्र 0.329 मानसिक स्वास्थ्य केंद्र हैं, अस्पतालों में बेड की संख्या 0.82 है, 43 मानसिक चिकित्सालयों में एक लाख लोगों पर मात्र 1.469 बेड उपलब्ध है। मानसिक रोगों के लिए प्रशिक्षित नसों की संख्या प्रति एक लाख लोगों की दर से 0.166, सामाजिक कार्यकर्ताओं की संख्या 1.49, मनोवैज्ञानिकों की संख्या 0.047 और मनोचिकित्सकों की संख्या 0.301 ही है। मनोरोगों की इतनी विकराल समस्या और संसाधनों की इतनी कमी, इसी से यह अंदाज लगाया जा सकता है कि हम इस समस्या का सामना करने के लिए कितना सक्षम है।
कारणों की बात- जहां तक मानसिक रोगों की समस्याओं के कारणों का प्रश्न है, इसके कारण एक नहीं बल्कि अनेक हैं। इनमें व्यक्ति की अपनी सोच, आदतें, सामाजिक और सांस्कृतिक समस्याएं, आर्थिक तंगी, और समाज में व्याप्त भ्रामक अवधारणाएं मुख्य रूप से उत्तरदाई हैं। इसलिए यह आवश्यक है कि जब भी किसी व्यक्ति में ऐसी कोई समस्या दिखाई पड़े तो तत्काल उसके उपचार के लिए प्रयास करना चाहिए। उसे पिछले जन्मों के कर्मों का फल या या भूत -प्रेत की बाधा मानने की भूल नहीं करना चाहिए। ऐसी समस्याएं भी रोग के रूप हैं, और इनका समाधान संभव है।
अतः, बिना देरी किए सक्षम चिकित्सक एवं परामर्शक से संपर्क करना बुद्धिमानी होगा। मानसिक रोग लाइलाज नहीं हैं, इनका भी इलाज संभव है।
रोकथाम के उपाय- मानसिक समस्याओं का सामना करने के लिए उपचार के साथ-साथ कुछ रोकथाम के उपाय भी लाभकारी हैं। जैसे, प्रातः योग एवं व्यायाम करना, ध्यान करना, अपने परिवार तथा मित्रों एवं अन्य उपयोगी सामाजिक संबंधों के संपर्क में रहना, उनसे अपनी बात साझा करना इत्यादि, इससे निश्चित रूप में प्रभावित व्यक्ति का मन हल्का होगा और समस्याओं के समाधान का रास्ता खुलेगा।
आस्था एवं विश्वास की भूमिका – अनेक आधुनिक शोधों से यह भी निष्कर्ष प्राप्त हुआ है कि किसी भी संकट के समय व्यक्ति को अपनी आस्था बनाए रखना चाहिए, ईश्वर में विश्वास रखना चाहिए और कठिन से कठिन परिस्थिति में भी धर्म के मार्ग से विचलित नहीं होना चाहिए। क्योंकि ये ऐसे मार्ग हैं जिनसे व्यक्ति में समस्याओं का सामना करने के लिए साहस उत्पन्न होता है, धैर्य बना रहता है, व्यक्ति का अपने क्रोध पर नियंत्रण रहता है, वह दंड के बजाय क्षमा करना पसंद करता है, व्यक्ति में संयम उत्पन्न होता है और अच्छे कार्यों में लगने के लिए उसे प्रेरणा प्राप्त होती। यदि व्यक्ति संकट के समय इन्हें अपना सुरक्षा कवच बना ले तो निश्चित है कि वह समस्याओं के भंवर से बाहर निकल आएगा।
यह दृष्टिकोण सार्वभौमिक स्तर पर प्रयोग में लाया जा सकता है, और ऐसा करके वैश्विक मानसिक स्वास्थ्य के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। हमारी भारतीय संस्कृति वैश्विक सुख, शांति और प्रसन्नता की कामना करती है, इस दृष्टि से देखा जाए तो विश्व मानसिक स्वास्थ्य संगठन का भी यही तो मिशन है।
सर्वे भवंतु सुखिन: सर्वे संतु निरामया
सर्वे भद्राणि पश्यंतु मां कश्चिद् दुख भाग भवेत्