पितृपक्ष समाप्त होने के अगले दिन शारदीय नवरात्रि का आरंभ हो जाता है। लेकिन इस वर्ष मलमास लगने वाला है। इसे अधिक मास या पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है। यह तीन वर्ष में एक बार आता है। मलमास के पूज्य देव भगवान विष्णु हैं, इस वजह से इसे पुरूषोत्तम मास भी कहा जाता है। मलमास 18 सितंबर से 16 अक्टूबर तक चलेगा।
मल मास क्यों कहा गया:
हिंदू धर्म में अधिकमास के दौरान सभी पवित्र कर्म वर्जित माने गए हैं। माना जाता है कि अतिरिक्त होने के कारण यह मास मलिन होता है। इसलिए इस मास के दौरान हिंदू धर्म के विशिष्ट व्यक्तिगत संस्कार जैसे नामकरण, यज्ञोपवीत, विवाह और सामान्य धार्मिक संस्कार जैसे गृहप्रवेश, नई बहुमूल्य वस्तुओं की खरीदी आदि आमतौर पर नहीं किए जाते हैं। मलिन मानने के कारण ही इस मास का नाम मल मास पड़ गया है।
पुरुषोत्तम मास नाम क्यों:
कहा जाता है कि ऋषि-मुनियों ने अपनी गणना पद्धति से हर चंद्र मास के लिए एक देवता निर्धारित किए। चूंकि अधिकमास सूर्य और चंद्र मास के बीच संतुलन बनाने के लिए प्रकट हुआ, तो इस अतिरिक्त मास का अधिपति बनने के लिए कोई देवता तैयार ना हुआ। ऐसे में ऋषि-मुनियों ने भगवान विष्णु से आग्रह किया कि वे ही इस मास का भार अपने ऊपर लें। भगवान विष्णु ने इस आग्रह को स्वीकार कर लिया और इस तरह यह मल मास के साथ पुरुषोत्तम मास भी बन गया।
पौराणिक कथा:
प्राचीन काल में हिरण्यकश्यप नामक दैत्य था। वे स्वयं को अमर करना चाहता था। भगवान विष्णु को वह अपना शत्रु मानता था। उसने ब्रह्मा जी से अमरता का वरदान पाने के लिए तपस्या की। ब्रह्मा जी उसकी तपस्या से प्रकट हुए और उनसे अमरता के अलावा कोई और वरदान मांगने को कहा। हिरण्यकश्यप ने चतुरता दिखाते हुए कहा कि मेरी मृत्यु 12 महीनों में नहीं होनी चाहिए जिस पर ब्रह्मा जी ने तथास्तु कहा।
हिरण्यकश्यप ब्रह्मा जी का यह वरदान सुनकर प्रसन्न हो गया कि अब वह अमर है। अमरता के वरदान की वजह से वह धरती पर कब्जा करने के लिए लगातार पाप कर्म करने लगा। भगवान विष्णु ने उसके बढ़ते पापों को देखकर उसका वध करने के लिए तेरहवां महीना यानी अधिक मास बनाया। इसी माह में भगवान विष्णु ने भक्तराज प्रहलाद के पिता दैत्य हिरण्यकश्यप का वध कर दिया।
अधिकमास में क्या करना उचित:
इस मास में व्रत- उपवास, पूजा- पाठ, ध्यान, भजन, कीर्तन,यज्ञ- हवन के अलावा श्रीमद् देवीभागवत, श्री भागवत पुराण, श्री विष्णु पुराण, भविष्योत्तर पुराण आदि का श्रवण, पठन, मनन विशेष रूप से फलदायी होता है।