देश में कोरोना संक्रमण बेकाबू होता दिख रहा है. इस बीच वैक्सीन तो आ चुकी और टीकाकरण (Vaccination) शुरू हुए भी कई महीने बीते, लेकिन इसके बाद भी हालात बिगड़ते दिख रहे हैं. कई राज्यों ने केंद्र से वैक्सीन की कमी की शिकायत की. इस बीच सरकार दूसरे देशों की वैक्सीन मंगवाने की कोशिश में है. इसमें रूस की स्पूतनिक वी को तो मंजूरी मिल सकी, लेकिन मॉडर्ना और फाइजर में अब भी पेंच फंसते दिख रहे हैं.
क्यों दिख रही विदेशी वैक्सीन की जरूरत
कोरोना की नई लहर खासी संक्रामक मानी जा रही है और सरकार समेत विशेषज्ञ इस बात की जरूरत बता रहे हैं कि जल्द से जल्द बड़ी आबादी का टीकाकरण हो सके. फिलहाल हमारे पास देसी वैक्सीन में कोवैक्सिन और कोविशील्ड हैं लेकिन उनका उत्पादन इतनी बड़ी आबादी का तेजी से टीकाकरण करने को पर्याप्त नहीं. यही देखते हुए अब विदेशी वैक्सीन को मंजूरी मिल रही है.
सरकार तलाश रही रास्ते
इसी मंगलवार को केंद्र ने उन वैक्सीन के इमरजेंसी इस्तेमाल के लिए हामी भरी, जो अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोप और जापान में स्वीकृत हो चुके हैं. साथ ही जिन्हें वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO) ने मंजूरी दी है. यानी अब विदेशी वैक्सीन भी जल्द ही भारत में होंगी. हालांकि ये उतना आसान नहीं.
मॉडर्ना और फाइजर से बात
काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रिअल रिसर्च (CSIR) मॉडर्ना के साथ लगभग 6 महीनों से बातचीत कर रहा है कि वैक्सीन हमारे यहां पहुंच सके. उसका कहना है कि वो बहुत से देशों से साथ करार कर चुका है और अब उसकी खुद की आपूर्ति प्रभावित हो सकती है. वहीं फाइजर लगातार वैक्सीन मार्केट का पुर्नमूल्यांकन करते हुए बीमा जैसी बातें कर रहा है.
फाइजर की है ये शर्त
इसे थोड़ा विस्तार से जानने की कोशिश करें तो समझ आता है कि अमेरिकी फार्मा कंपनी फाइजर ने पहले ही भारत में अपने इमरजेंसी इस्तेमाल के लिए आवेदन किया था. लेकिन फिर इस साल की जनवरी में उसने अपना आवेदन वापस ले लिया. इसकी वजह के बारे में द प्रिंट सूत्रों के हवाले से बताता है कि केंद्र फार्मा कंपनी के बीमा बॉन्ड पर सहमत नहीं था.
चाहता है कानूनी राहत
बता दें कि ये बॉन्ड कोई आम बॉन्ड नहीं, बल्कि अगर ये करार होता है तो इसका मतलब है कि फाइजर के कारण अगर लोगों में कोई साइड-इफेक्ट होता है तो कंपनी पर कोई कानूनी कार्रवाई नहीं की जाएगी. चूंकि फाइजर हमारे यहां की कंपनी नहीं और न ही हमारे लोगों पर उसका कोई बड़ा ट्रायल हुआ है. ऐसे में इस बॉन्ड पर केंद्र की असहमति समझ में आती है
जॉनसन एंड जॉनसन मंजूरी चाहता है
इस बीच जॉनसन एंड जॉनसन ने भी भारत को अपने टीके देने में दिलचस्पी दिखाई और सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन (CDSCO) से इस बारे में बात की. वो चाहता है कि जल्द से जल्द देश में वो अपने क्लिनिकल ट्रायल शुरू कर सके. इस वैक्सीन के साथ बढ़िया बात ये है कि ये सिंगल डोज है, जबकि बाकी सारी वैक्सीन्स दो डोज में दी जा रही हैं.