वाह! गजब है’ उड़ता बनारस’
वरिष्ठ पत्रकार और लेखक सुरेश प्रताप की पुस्तक ‘ उड़ता बनारस ‘ का लोकार्पण आज बृहस्पतिवार को प्रमुख हिन्दी कथाकार डा. काशीनाथ सिंह ने किया. श्री सिंह ने अस्वस्थता के बावजूद इस पुस्तक की सराहना करते हुए इसका लोकार्पण किया.
सुरेश प्रताप ने इस पुस्तक में बनारस क्या था और क्या हो रहा है, उसका उल्लेख कहीं कथात्मक तो कहीं सपाट लेखन शैली में रोचक ढंग से किया है. लेखक की विशेषता लेखों को रोचक बनाने की होती है, ताकि पाठक में आगे पढ़ने की उत्सुकता बनी रहे. ऐसा होने से पाठक वर्ग को उसे हृदयंगम करने में कोई दिक्कत नहीं होगी. सुरेश प्रताप ने इसका बखूबी ख्याल रखा है.
इस पुस्तक की विषय सामग्री वही है, जिसे हम महीनों से सोशल मीडिया पर पढ़ते हैं. सुरेश जी के उन्हीं लेखों को सजा संवारकर प्रकाशक ने सबके सम्मुख प्रस्तुत करने का प्रयास किया है. पकप्पा और उड़ता बनारस दो ऐसे शब्द हैं, जो लोगों के दिमाग में कौधेंगे. लेकिन घबड़ाने की जरूरत नहीं, उस किताब में सारे उत्तर मिल जाएंगे.
हम जानते हैं कि काशी, वाराणसी अथवा बनारस तीनों एक ही हैं. एक ही संस्कृति, एक ही लोग. विश्व के किसी भी शहर में पक्का महाल नहीं होगा. यदि होगा भी तो बनारस की तरह नहीं, जहां विभिन्न सम्प्रदायों, धर्मों, देशों, राज्यों के लोग एक ही जगह सुन्दर, सर्पिली गलियों के मुहाने पर मिलते हों. खान, पान, मिष्ठान, बोलचाल, भाषा का भी यही हाल. गीत, गवनई, गाने वाले सब एक से एक. इसीलिए तो काशी तीनों लोकों से न्यारी है. एक ओर वरुणा तो दूसरी ओर असि. वहीं तीसरी ओर काशी का पद प्रक्षालन करती मां गंगा. बाबा विश्वनाथ और सुन्दर घाट ऐसा मनोरम और सुरम्य वातावरण विश्व में कहां मिलेगा.
सुरेश प्रताप ने अपनी पुस्तक ' उड़ता बनारस' में इन्हीं विषयों को वर्तमान परिप्रेक्ष्य में सजोया है. इसमें निर्माण को दर्शाने का प्रयास भी किया है तो विध्वंस की आंधी पर भी बखूबी प्रकाश डाला है. केदारनाथ व्यास से संवाद और उनका मकान भी है तो उनके हीरामन तोता से भी बातचीत का जिक्र भी है. जर्मन महिला के काशी में रम जाने की भी कहानी है. भिखारी महल है तो अमीरों की अट्टालिकाओं का वर्णन भी. बनारस की पहली लाइब्रेरी ' कारमाइकल' के विनाश का जिक्र भी इस पुस्तक में है तो वहां बने नीरा राडिया के अस्पताल का वर्णन भी. विनाश के धरातल पर निर्मित विकास के महल को विकास नहीं कहा जा सकता. सुरेश प्रताप ने अपनी रिपोर्ट में इसे भरपूर समझाया है.
साथ ही लाहौरी टोला, सरस्वती फाटक जैसे मुहल्लों, गलियों, ऐतिहासिक भवनों आदि का इतिहास भी अब कहीं नहीं, इसी पुस्तक में मिलेगा. कारण कि मुहल्ले जमीदोज हो गये तो आप उसे खोजेंगे कहां. इस विध्वंस को लेकर आन्दोलन और उसके अन्त तथा उसमें शामिल तरह तरह लोगों की सत्यकथा भी उड़ता बनारस में पढ़ने को मिलेगी. मैं इस पुस्तक प्रकाशन के लिए सुरेश जी को ढेर सारी बधाइयाँ देता हूं. युग जीयो मेरे मित्र, युग युग जीयो.