जिंदा रहना है तो स्लीपर बसों से यात्रा न करें
देश में एक महीने के भीतर स्लीपर बसों में लगी आग से 40 से ज्यादा यात्री जलकर मर चुके। हायतौबा मचती है और फिर सब शांत। एक्शन न होने से एक नया हादसा हो जाता है।
चीन और यूरोप के कई देशों में हादसे के बाद स्लीपर बसों पर पहले ही बैन लग चुका है। कई देशों ने बहुत सख्त मानक बनाए है। लेकिन, भारत में कई हादसे के बाद भी हालात जस के तस हैं।
सिस्टम की साँठगाँठ से अनफिट बसें दौड़ रहीं हैं । एक चिंगारी से बसें आग का गोला बन जाती है तो यात्री बेचारे राख में तब्दील। डिजाइन इतनी जानलेवा होती है कि स्लीपर सीटें निकालने के चक्कर में बसों के इमरजेंसी डोर पूरी तरह बंद कर देते हैं। पैसे बचाने के चक्कर में एसी की सही फिटिंग न होने से भी शॉर्ट सर्किट के खतरे बने रहते हैं। पैसे बनाने के लिए सर्विसिंग को नजरअंदाज कर जरूरत से ज्यादा फेरे लगाते हैं तो भी हादसे की गुंजाइश बढ़ जाती है।
स्लीपर बसों के गलियारे में इतनी कम जगह होती है कि आग लगने पर यात्री निकल भी नहीं सकते । राजस्थान सहित देश के कई हिस्सों में स्लीपर बसों के जलकर ख़ाक होने की घटनाओं पर सरकारों का ध्यान जहां जाना चाहिए, वहीं जनता को भी सफर का माध्यम चुनने में सावधानी बरतनी चाहि













